ये सिक्के ही करते आवाज हमेशा,
पर नोट सदा ही रहते हैं खामोश।।
यूँ तो दोनों की ही अपनी कीमत है,
पर एक है चंचल दूजा है खामोश।।
कूलरों के  चलने से आवाजें आती,
पर एसी चलने से होता न है शोर।।
नालों के बहने से आवाजें हैं आती,
पर नदियाँ बहती होता है न शोर।।
अधजल गगरी यह छलकत जाती,
पर भरा घड़ा कभी नहीं छलकता।।
असहनशील में क्रोध झलक जाता,
पर सहनशील में यह न झलकता।।
जिनका मूल्य नहीं वही बकबकाते,
पर मूल्यवान बकबकाया न करते।।
बिना हैसियत के ही दिखावा करते,
पर हैसियत वाले दिखावे न करते।।
अज्ञानी ही ज्ञान का दिखावा करते,
पर ज्ञानी कभी दिखावा ना करते।।
कपटी मीठा बोल सदा छला करते,
पर निश्छल कभी कपट ना करते।।
दुष्चरित्र बिना वजे सताया करते हैं,
पर चरित्रवान ऐसा कभी न करते।।
पूर्वाग्रह से ग्रसित सदैव खोजें नुक्स,
पर दिल के अच्छे ऐसा नहीं करते।।
रचयिता :
डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पीबी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
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