तुम मगर ऐसे जीने का वादा करो।
हम खिलाफत तुम्हारी करेंगे नहीं।।
तुम मगर यह भी कहने का इरादा करो।
हम बगावत तुमसे करेंगे नहीं।।
तुम मगर ऐसे जीने——————।।
जैसे कि हमने ताकीद तुमको किया।
आप करना नहीं हरकत ऐसी।।
सोचकर तुम उठाना कोई कदम।
चाहे खुशी नहीं हो वहाँ ऐसी।।
तुम अहम अपने दिल से दूर करो 
हम नफरत तुमसे करेंगे नहीं।।
तुम मगर ऐसे जीने—————–।।
हमको यही राज मालूम था।
आप हमारे चमन का ही हिस्सा हो।।
आप छुपाते नहीं हो सच को कभी।
आप सच्चाई का ही एक किस्सा हो।।
हमसे दूरी अब यह खत्म करो।
हम नाखुश तुमको करेंगे नहीं।।
तुम मगर ऐसे जीने—————-।।
माना कि आप इतने सक्षम नहीं।
हक हमारा तो हमको दे दीजिए।।
आप बदनाम हमसे होंगे नहीं।
आप इंसाफ हमसे कर दीजिए।।
आप गुनाह अपना भी कुछ कबूल करो।
हम तुम्हें बेवतन करेंगे नहीं।।
तुम मगर ऐसे जीने——————-।।
साहित्यकार एवं शिक्षक-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
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