बाबासाहब ने दिया,हमको प्रखर विधान।
बाबासाहब बन गये,हम सबकी पहचान।।
बाबासाहब चेतना,एक अटल विश्वास।
बाबासाहब शान थे,जन-जन की आस।।
बाबासाहब मान थे,हम सबका अभिमान।
संविधान का कर सृजन,किया सतत् उत्थान।
बाबासाहब कर्म थे,पूरे अनुसंधान।
बाबासाहब देशहित,मानवता के प्राण।।
बाबासाहब ने किया,नवल एक उद्घोष।
बाबासाहब ने दिया,हर पीड़ित को जोश।।
बाबासाहब गर्जना,प्रबल एक आवेग।
सकल वतन को दे गये,समरसता का नेग।।
बाबासाहब जागरण,अंधकार पर मार।
सकल तिमिर का कर हरण,फैलाया उजियार।।
दिलवाया इंसान को,मान और अधिकार।
बाबासाहब की सदा,होगी ही जयकार।।
बाबासाहब ने किया,आजीवन संघर्ष।
इसीलिए हर आदमी,के मुख पर है हर्ष।।
बाबासाहब का जनम,मंगलमय,जयकार।
जो सूरज से तेजमय,बने दिव्य अवतार।।
        –प्रो(डॉ)शरद नारायण खरे
                   प्राचार्य
शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
                  मंडला,मप्र
      
प्रमाणित किया जाता है कि रचना मौलिक व अप्रकाशित है–प्रो.शनाखरे
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