मेरी मोहब्बत को मेरी कमजोरी मत समझ
सुन तू क्या जाने आशिकी क्या होती हैं
हमेशा चाहा हैं मैने पूरी शिद्दत से तुझे
बेवफ़ा तू क्या जाने उल्फत क्या होती हैं
जब जब तुझे मेरी जरूरत महसूस हुई
इस्तेमाल कर कचरा समझ फेंक दिया
तेरी हर बात में सहमति जो दिखाई
तूने मुझे कम अक्ल समझ लिया
बीच चौराहे नीलाम कर दिया मुझे
तेरे इश्क में बिक जाना भी कुबूल है
कमबख्त तेरी सूरत ही इतनी फरेबी है
तुझसे खाएं धोखे भी कम पड़ जाते हैं
नहीं जानती बनावट का मुखौटा लगाना
मेरी सादगी को तूने पागलपन समझ लिया
बेशक तूने मुझे लाखों दर्द दिए हो
पर आज भी तेरे जख्मों की दवा हूं मैं
मत कर मेरी चिंता तेरी कोई नहीं मैं
मेरी हर दुआ तेरी खैरियत चाहती हैं
तू बाहर से खाना खा कर आ बेशक
तेरे घर लौटने तक भूखी रही हूं मैं
तेरा दिल धड़कता हैं ओरों के लिए
मेरी हर सांस तेरे नाम से चलती हैं
कुछ नहीं चाहिए बदले में तुझसे
बस कुछ पल देख लूं जी भर
हां तेरी बातों में उलझ जाती हूं मैं
हर बार तेरे झांसे में आ जाती हूं मैं
तेरे प्रेम में मग्न हो सुध बुध खो बैठी
मेरी चाहत को मेरी मज़बूरी मत समझ
नेहा धामा ” विजेता ” बागपत , उत्तर प्रदेश