कहते हैं वहीं सेठ है जिसे पेट है।
पर छरहरी काया के आगे मटियामेट है।
खास नाम पाया ‘तोंद’ उत्तल पेट ने।
अर्द्धगोले सा या गुंबद सा उभरे गोल पेट ने।
संपन्नता की निशानी या घर परेशानियों का।
जरा झुकने से पसीने से लथपथ पेशानियों का।
तेज दौड़ सकते नहीं,तेज कूद सकते नहीं।
बीमार रहने पर भी लोग कमजोर कहते नहीं।
मेरी तो तोंद नहीं पर कुछ सोचती हूं।
दो तोंदवाले कैसे गले मिलते होंगे,हंसती हूं।
नींबू-पानी कितना पियें,कसरत से जी चुराते हैं।
चटपटे व्यंजनो को देख,काबू में कहां रह पाते हैं।
कुछ तोंदू तो बिंदास रहते,फर्क नहीं कोई,लोगों से।
बेशक बिंदास रहे पर बचे रहे उबाऊ रोगों से।
कमीज पेट पर तन,मानों अब फटनेवाली।
पछता के करें क्या चर्बी आसानी से ना हटनेवाली।
इन सबके बावजूद हंसते बुद्ध को पूजते लोग।
हंसते हुए प्यारे बुद्ध को शीश नवाते लोग।
       -चेतना सिंह,पूर्वी चंपारण
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