जिधर देखो उधर खिलौने
सबके सब मिट्टी से बने हुये
कोई राजा तो कोई भिखारी
कोई सेवक तो कोई दरबारी
कोई जज कोई अपराधी
कोई डॉक्टर, नर्स, मरीज
तो किसी की काली, खाकी वरदी ।
सब अपनी अकड़ में अमचूर
सत्ता, धन दौलत, ताकत में चूर
भगवान को भी ठेंगा दिखाने लगे
“जनक” को भी आंखें दिखाने लगे
मिट्टी के खिलौनों के दंभ पर
एक दिन ईश्वर को बड़ा गुस्सा आया
जरा सी भृकुटि टेढ़ी की और
एक भयानक सा भूकंप आया
सारे खिलौने मिट्टी में मिल गये
सामने ईश्वर को देखकर हिल गये
जिसे ठेंगा दिखा रहे थे वही नियंता है
इस सत्य को शायद वे भूल गए ।
हरिशंकर गोयल “हरि”