आज़ादी के वीर सपूत – अर्थात्
स्वतंत्रता सेनानी।यह वही व्यक्ति होता है जो अपने स्वयं के स्वार्थ को त्याग देश के हित के लिए कार्य करता है, तथा अपने देश अपनी मातृ भूमि की स्वतंत्रता के लिए लड़ी गई लड़ाई में भाग लेता है। अपने प्राणों की भी परवाह न कर अपना घर परिवार सब छोड़ अपना जीवन अपनी जिंदगी अपनी मातृ भूमि पर निछावर कर देता है। चलें कुछ शब्दभाव गुच्छ देखें -:
आज़ादी के वीर सपूतों ने इस धरती पर था जन्म लिया।
नवलक्रान्ति जगा सबके मन में,भारत को आजाद किया।भारत के इस लाल ने देखो,जन जन में था जोश भरा।
सोई चेतना जगा के सबकी,हर घर से था लाल खड़ा।
सीना तान खड़े थे आगे,गोरों को बर्बाद किया।’तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा’ का नारा देकर ,भारत को सम्मान दिया।लौह पुरुष कहलाये नेता,प्रतिभा भी थी कूटकूट कर भरी हुई।गठन किया आजाद हिंद फौज का,तब भारत की आस जगी।वीरों की है धरा हमारी,वीरों का है हिंदुस्तान।
नेता सुभाष, भगत, राणा जैसे वीर जहाँ हुए,ऐसा हमारा हिंदुस्तान है।
तीन रंगों में रंगा ये झंडा, हमारे देश की पहचान है।
गर्व करें हम देश पर अपने ये, जिसमें बसती जान है।
बारम्बार नमन हैं उन आज़ादी के वीर सपूतों को,मातृभूमि की रक्षा करते,जो देश पर हुए बलिदान हैं।
धन्य है धरा भारत की जिसे ऐसे निर्भीक लाल मिले,
त्याग, समर्पण और बलिदान की गाथा देकर शाश्वत अमर हुए।
लेखिका- सुषमा श्रीवास्तव, मौलिक भाव, सर्वाधिकार सुरक्षित, रुद्रपुर, उत्तराखंड।