सुनो…
तुम.. हर वक्त हर लम्हा
मेरे साथ ही तो रहती हो,
नज़र नहीं आती हो मगर
मेरे आस पास ही तो रहती हो…
मैं जो चाहूं तुम्हें छूना
तुम दूर चली जाती हो,
फिर मुड़ के देखती हो
और हौले से मुस्कराती हो…
मैं जो उदास होता हूं
तो तुम भी उदास होती हो,
ख्वाबों में आके फिर तुम
मुझसे लिपट के रोती हो…
हां…..तुम रोज….
मेरे साथ ही तो रहती हो
दिखती तो नहीं हो पर….
मेरे आस पास ही तो रहती हो।।
डॉ0 अजीत खरे
प्राचार्य
स्नातकोत्तर महाविद्यालय