इंद्रदेव की कृपा से,वर्षा का मौसम आया।
छाता छतरी रेनकोट,भी बारिश ले आया।
मास जेठ का जाते ही,आषाढ़ शुरू होता।
वर्षाऋतु भी कहें इसे,बारिश खूब है होता।
बारिश के मौसम में,ये बादल बरसात करें।
नाचे मन का मोर भी,पक्षी भी कलरव करें।
मंद-2 वर्षा फुहारों से,मन होये भाव विभोर।
जंगल में नाचे है मोरनी, संग ही नाचे है मोर। 
चहुँओर दिखे हरियाली,खिले फूल हैं डाली।
पपीहे की टेर लगे प्यारी,कोयल कूके डाली।
रिमझिम-2 बरसे पानी,शीतल बहती बयार।
प्रेमी दीवानों का उमड़ता,एक दूजे का प्यार।
उमड़ घुमड़ बादल बरसे,टर्र टर्र मेढ़क बोले।
बिजली तड़के बादल गरजे,झींगुर भी बोले।
वन उपवन खिल जाये,झरना संगीत सुनाये।
कल-2 करती नदियाँ, अविरल बहती जाये।
बच्चे उछलें पानी में,कागज की नाव चलायें।
खेतों में जायें किसान,स्वयं हल बैल चलायें।
काले भूरे सफ़ेद बादल,आषाढ़ी बरसात करे।
तपती गर्मी से छुटकारा, वर्षा अकस्मात करे।
आषाढ़ के बादल बरसें,धरती की प्यास बुझे।
बदली छा काली घटा, बरसे अच्छा लगे मुझे।
बारिश में बैठे-2,गर्म पकौड़ी चाय पियें खायें।
लूडो चेस कैरम  खेलें, वर्षा का आनंद उठायें।
रचयिता :
डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पीबी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
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