बिना पढ़े ना मिले ये डिग्री,
कुछ तो  पढ़ी लिखी होगी।
इतने डिग्री लेके घूम रही है,
छाले भरे पड़े पांव में होगी।
सूखे हैं होंठ थकी लगती है,
चेहरा देखो तो बहे पसीना।
गज़ब हिम्मती है ये तो देखो,
इस गर्मी में यह चले हसीना।
एक पल भी तो बर्दास्त नहीं,
कोई भी ठहर ना पाये इसमें।
ज़िस्म जला देती है पूरा पूरा,
गोरे हो जाते हैं काला इसमें।
नीचे से जलती है यह धरती,
ऊपर से खौलता आसमान।
ऐसा है यह गर्मी का मौसम,
कैसे सुरक्षा करें पशु इंसान।
सम्हले  रहें इस धूप गर्मी से,
हानिकारक हैं इसके थपेड़े।
लू बन जाती है बड़ी आफत,
सह न सके यह शरीर थपेड़े।
सर मुंह  ढँके बिना अंगौछे से,
बाहर न जायें खतरा है जान।
इससे भी बड़ा बच के रहना है,
45 डिग्री का है यह तापमान।
रचना :
डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
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