क्या कहूँ, क्या लिखूं

निःशब्द हूँ, मौन हूँ
लाखों तूफ़ान उमड़ रहे है,
कुछ दिल में कुछ मस्तिष्क में
आखिर क्या है अस्तित्व मेरा
क्या हूँ अस्तित्वहीन मैं 
कभी बेबस सा महसूस होता है
कभी बेहद विचलित सा,
क्या भोग विलास की वस्तु मात्र हूँ मैं,
क्या है उद्देश्य मेरा,
कोई तो सुलझती राह मिले,
क्या मात्र पोषक हूँ मैं
क्या दूसरों का खुश रखने का सामान हूँ मैं
कौन हूँ मैं, क्या है अस्तित्व मेरा
या बस यूँ ही निरर्थक हूँ मैं,
पहचान है फिर भी बेनाम हूँ मैं,
स्वंय की इच्छाएं क्या,
बस कहने भर को शक्ति हूँ मैं,
ग़र परखने जाऊँ जहान में,
सबके लिए गुमनाम हूँ मैं….।
निकेता पाहुजा
रुद्रपुर उत्तराखंड
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