माँ शब्द अपने आप में सारा जहाँ छुपाए हुए है। माँ का ममत्व अपनी संतान के लिए अच्छे से अच्छा और बुरे से बुरा कार्य करने  को तत्पर हो जाता है।उसका आँचल स्वयं को उघाड़ कर भी संतान को ढक लेना चाहता है।वह भी बिलकुल निःस्वार्थ भाव से।
इसी तथ्य को सिद्ध करती कहानी मैं आप सबसे साझा कर रही हूँ। 
         रागिनी अपने ही धुन में जल्दी- जल्दी काम निपटाती जा रही थी और मन ही मन भविष्य की परिकल्पना में विचरती यूँ ही कुछ गुनगुनाती हुई तल्लीनता से भावनाओं के सागर में डूबती उतराती कब बिस्तर पर निद्रालीन हो गई उसे कुछ एहसास ही नहीं हुआ। अगले दिन रविवार था। सुबह पाँच बजे ही उसके नयन उन्मीलित हुए। उसने देखा- राघवेन्द्र और रौनक बड़े आराम से अभी सो रहे हैं। दोंनो की आज छुट्टी जो है। पर उसकी तो कोई छुट्टी होती नहीं, फिर भी वो इसी में प्रसन्नचित्त हर दिल अजीज है। प्रसन्नता पूर्वक उन चार लोगों का परिवार खुशी-खुशी  जीवन को गतिमान किए हुए था। अचानक रागिनी की सास जो बहू को बेटी का मान देतीं थीं, का देहावसान हो गया। 
रागिनी स्वयं को बहुत अकेला महसूस करने लगी। जबकि वह जन्म मृत्यु की सच्चाई से पूर्णतः वाकिफ थी फिर भी भावनाएँ तो जोर मारती ही हैं। असल में रागिनी की मां जब वह बहुत छोटी थी तभी किसी बीमारी में चल बसी थीं। उसने सासु माँ में ही माँ को पाया था।
लगभग पन्द्रह वर्ष पश्चात एक दिन रागिनी प्रातःकालीन दैनिक क्रिया-कलाप से निवृत्त होकर नाश्ता तैयार कर रही होती है तबतक रौनक और राघवेन्द्र भी फ्रेश होकर आ जाते हैं। डाइनिंग टेबिल पर तीनों बैठकर नाश्ता करते हैं। इसी के मध्य रागिनी कहती है कि बेटा देख अब मेरा शरीर भी थकने लगा है ,वैसे भी आप दोंनो पूरे दिन के लिए ऑफिस चले जाते हो मैं अब एकाकीपन से घबराने लगी हूँ। इतना बड़ा घर, दिन भर भांय- भांय करता है, मुझे भी कोई साथी चाहिए एक अदद बहू चाहिए। जो दिनभर मेरे साथ रहेगी। बहुत हो गया अब कोई बहाना नहीं चलेगा। अब तो तेरी नौकरी भी लग गई है। 
            राघवेन्द्र ने भी मुस्कुरा कर कहा- अच्छा,ऐसी बात है तो ठीक है।रौनक बेटा आप को कोई पसंद हो तो बेहिचक बोलो हमें तो कोई ऐतराज है नहीं। नहीं तो मैं शुरू हो जाता हूँ इस प्लान पर। रौनक बोला- पापा इतनी भी क्या जल्दी है?कितने सकून से हम लोग रह रहें हैं। मुझे डर लगता है कि कहीं ये सकून भी न छिन जाए। 
         अरे बेटा, अब तेरी माँ की चाहत का ख्याल तो करना ही होगा न,जब तक तेरी दादी थीं तो उसे अकेले होने की फुर्सत ही नहीं थी। अब उसकी भी उम्र हो रही है।सच में उसे इस घर में पूरे दिन अकेलापन काटता होगा। हम दोंनो अपने अपने कार्य में व्यस्त हो जाते हैं ।केवल एक दिन का साथ मिलता है। उसमें भी कभी-कभी आना जाना पड़ जाता है।रागिनी तो कबसे रट लगाए है। मैं ही अनसुना कर देता था, पर अब तो कुछ करना ही पड़ेगा। 
             ठीक है पापा मुझे कोई एतराज नहीं, पर मम्मा आप देख लो, सारे समय आपको ही साथ रहना है,आजकल की लड़कियाँ आप जैसी नहीं होतीं, फिर कहीं आपकी ही परेशानी न बढ़ जाए? अभी पिछले महीने देखा था पड़ोस में क्या हुआ था?
         रागिनी ने कहा- बेटा जब मैं गलत नहीं करूँगी, प्यार और ममत्व का ही भाव रखूंगी तो कैसे वैसा ही हो जाएगा। फिर सभी लड़कियाँ एक सी थोड़ी होती हैं। 
                रौनक ने कहा जैसी आप लोगों की इच्छा पर मुझे दोष मत दीजिएगा और इतना कहकर अपने कमरे में चला गया। 
बात आई गई हो गई, पर राघवेन्द्र जी इस योजना को चोला पहनाने की फिराक में थे। रौनक एक सीधा साधा जमाने से हटकर चलने वाला लड़का था इसलिए उससे तो कोई उम्मीद थी ही नहीं। 
        राघवेन्द्र जी ने अपने मिलने-जुलने वालों से इस बारे में जिक्र किया और जल्दी ही रिश्ता मिल गया। मिलता भी क्यों न ,अच्छा खासा कमाऊ पूत जो था। ‘चट मंगनी पट ब्याह’  कहावत को चरितार्थ करते हुए रौनक की शादी भी हो गई। एक चार-छः माह तो यूँ ही निकल गए, पता ही न चला।
           शहर में ही मायका होने से बहू राशि का आना-जाना कुछ ज्यादा ही हो रहा था पर किसी ने ज्यादा तवज्जो नहीं दी। एकाध बार रागिनी ने राघवेन्द्र से कहा भी तो उन्होंने भी अभी बच्ची है, थीरे-धीरे समझ जाएगी कहकर रागिनी को ही समझा दिया। राशि के न रहने पर रौनक को कोई फर्क ही नहीं पड़ता क्योंकि रागिनी पूर्ववत् समस्त कार्य भार सम्भाल ही रही थी बिना उफ किए। 
       वक्त को किसने देखा है? एक दिन ऑफिस से आते समय सड़क दुर्घटना में राघवेन्द्र जी का इन्तकाल हो जाता है।घर में कोहराम मच जाता है चकरघिन्नी सी घूमने वाली रागिनी शून्य सी हो जाती है और रौनक भी असमय फट पड़े दुःख के बादल तले निराश-हताश सा हो गया था।राशि को कोई फर्क नहीं पड़ता दिख रहा था।जब तक घर पर रिश्तेदार थे, तब तक तो गनीमत रहा पर संस्कार खत्म होते ही सभी रागिनी ,रौनक और बहू को तरह-तरह की हिदायतें देकर चले गए। 
               ऐसे में भी जब राशि मायके जाने को उतावली हुई तो रौनक से न रहा गया।उसने कहा- अब तुम्हें कहीं नहीं जाना है,यहीं माँ के साथ घर में रहना है और माँ के साथ-साथ घर की पूरी जिम्मेदारी उठाना तुम्हारा कर्त्तव्य है। मुझे तो ऑफिस जाना है जो कि जरूरी है अब माँ को छोड़कर तुम कहीं नहीं जाओगी। 
                  फिर क्या था राशि तुनक कर बोली- मैं कोई आया या नौकरानी नहीं हूँ और न ही तुम्हारी माँ  कोई बच्चा है जिसकी मैं देखभाल करूँ। मैं मायके तो जरूर जाऊँगी जब दिल करेगा। 
     रौनक ने कहा- तुम्हारी यही जिद है तो ठीक है फिर वहीं रहना हमेशा के लिए, यहाँ आने की कोई जरूरत नहीं है।मैं अपनी माँ की देखभाल कर लूँगा। जिसने मुझे जन्म दिया, मेरे लिए दिन को दिन और रात को रात नहीं समझा उसके लिए मैं अपना पूरा जीवन भी न्योछावर कर दूँ तो भी कम होगा। मैं अधिक तो बोलता नहीं हूँ,पर जो कह दिया वही होकर रहेगा यह भी जान लो। जब तक पापा थे मैंने कुछ नहीं बोला पर अब सोच समझकर घर से पैर बाहर निकालना और अगर निकाला तो फिर कभी लौट कर मत आना। इतना कहकर माँ को प्रणाम कर वह ऑफिस चला गया।
                राशि ने अपने घर फोन मिलाकर बात की और तैयार हो रागिनी को मम्मी के घर जा रही हूँ बोलकर बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए एक बैग लेकर निकल ली।
             शाम को जब रौनक ऑफिस से आया तो पूँछने पर रागिनी ने कहा- बोल कर गई है कि मम्मी के घर जा रही हूँ। रौनक ने भी चुपचाप सुन लिया।,कोई जवाब नहीं दिया। वैसे रौनक अपने पापा की तरह ही बहुत कम बोलता था पर बहुत ही संस्कारी और संवेदनशील प्रकृति का था। उसने ऑफिस से दो दिन की छुट्टी ली और घर पर पूरी तरह से देखभाल और कामकाज करने के लिए एक साफ-सुथरी जरूरतमंद गरीब महिला का प्रबंध कर लिया और माँ से बोला- अब आप को कोई भी काम करने की आवश्यकता नहीं है, एवं न ही आप दिन भर घर में अकेली रहेंगी। ‘माला’ दीदी के जाने से पहले ही मैं ऑफिस से वापिस आ जाऊँगा। रागिनी रौनक के मन के सारे भाव समझ रही थी पर अभी कुछ बोली नहीं, बस इतना कहा क्या जरूरत थी इसकी सब हो जाता धीरे-धीरे।रौनक ने भी कुछ नहीं कहा। बस मुस्कुरा कर ऑफिस चला गया।
           शाम को ऑफिस से आकर फ्रेश होकर माँ के पास बैठकर सारे दिन का हाल-चाल लिया। इतने में माला चाय और स्नैक्स ले आई फिर रसोई में काम करने चली गई। उसके जाने के बाद चाय पीते हुए रागिनी ने राशि का जिक्र छेड़ा तो रौनक ने सपाट उत्तर दिया- मां वह हमारे घर के योग्य नहीं है। अभी तक मैंने कुछ नहीं कहा लेकिन अब तो पापा चले गए, जो ईश्वर को मंजूर था हुआ, पर राशि कोई छोटी सी बच्ची नहीं है,मेरे मना करने के बावजूद भी वह आपको इस हालात में अकेला छोड़कर चली गई। उसे अपनी ज़िम्मेदारी और घर-परिवार की तनिक भी परवाह नहीं है। मेरे अल्टीमेटम को अनदेखा कर दिया। आपने तो कभी ऐसा व्यवहार पापा क्या किसी के साथ भी नहीं किया। 
        रागिनी ने कहा कोई बात नहीं धीरे-धीरे सब सीख और समझ जाएगी।
     नहीं मां, उसके इस स्वभाव को बिलकुल भी हवा देने की जरूरत नहीं। पहले पापा भी राशि के लिए ऐसे ही आपको दिलासा देते रहे, ये बात आप भी जानती हैं और मैं भी अच्छे से जानता हूँ। पर अब घर में वो पुरानी राशि नहीं लौटेगी। हां अगर सुधर कर वापस आना चाहे तो कोई ऐतराज नहीं पर अगर उसके दिमाग में है कि हम उसके मुरीद हैं, वो गलत-सही जैसा चाहेगी करती रहेगी तो कदापि नहीं। उसके लिए इस घर के दरवाजे बिलकुल बंद हैं। 
पर बेटा दुनिया वाले क्या कहेंगे? 
    नहीं मां,दुनिया वालों के डर से हम अपने घर का सकून नहीं खोयेंगे। कल यही हमारे घर की चर्चा कर-कर के रस लेंगे। हां, आपको कोई परेशानी हो तो बोलिए मैं निराकरण करने की भरसक कोशिश करूँगा। 
          नहीं बेटा, तेरे जैसे लाल को पाकर मैं धन्य हो गई। मैं देख रही हूँ कि कभी भी कुछ न बोलने वाला मेरा बच्चा तो बहुत समझदार इंसान बन गया है।
         आखिर बच्चा आपका ही है ना। 
     हां, वो तो है ही,उसमें भी कोई शक?
     पर सोच रही हूँ कि कुछ समय लेकर अगर तेरी शादी करते तो शायद ऐसा न होता।
       माँ आप नाहक दुःखी होती हो। जो होना था हो गया। अब जो कर सकते हैं उसमें कमजोर क्यों पड़ना, कि गैर लाभान्वित हों। 
       तबतक माला आ गई और उसने खाने के लिए पूँछा। रौनक ने कहा- नहीं, अभी नहीं खायेंगे, तुम जाओ, सुबह वक्त से आ जाना बस इतना ध्यान रखना माँ को कोई तकलीफ़ न हो।उसने कहा- जी भैय्या। जाते-जाते उसने रागिनी से कहा- माँ जी खाना खाने के बाद आप रसोई वैसे ही छोड़ दीजिएगा सुबह जल्दी आकर मैं सब कर लूँगी। 
             उसके जाने के बाद रागिनी ने कहा- बड़ी अच्छी है माला, बिलकुल घर समझकर काम करती है, जरा भी टोकने की आवश्यकता नहीं पड़ती। 
           हाँ, मां जरूरतें और परिस्थितियां इंसान को सब सिखा देतीं हैं। 
        हाँ बेटा।
       ऐसे ही दिन गुजरते रहे। वहाँ मायके में राशि का मान भी धीरे-धीरे कम होने लगा। एक दिन राशि की मम्मी का फोन रागिनी के पास आया। हाल-चाल पूँछ वो मुद्दे पर आ गईं। कि क्या बात है? 
रागिनी ने कहा- कोई बात नहीं है।
      रौनक जी नाराज ही हैं क्या?
    नहीं तो,मुझे तो कुछ पता ही नहीं, मुझसे तो ऐसी कोई बात हुई नहीं। मैंने तो आज तक रौनक को नाराज होते देखा ही नहीं। मेरे घर में तो कोई ऊँची आवाज में बोलता ही नहीं, नाराज होना तो बहुत दूर की बात है।
   मुझे ऐसा आभासित हो रहा है।
    यदि आप को ऐसा आभासित है तो राशि से ही पूँछ कर देखिए, हो सकता है उसको पता हो। 
          शाम को रौनक से रागिनी ने सारी बात बताई। उसने कहा- आपने बिलकुल सही जवाब दिया। हँसते हुए वाशरूम में चला गया। 
        चार पांच दिन बाद दोपहर में रागिनी के पास राशि का फोन आया वह फूट-फूटकर कर रो रही थी और अपनी ही गलती बता कर बार बार माफी माँग रही थी। 
रागिनी ने कहा- बेटा मुझे तो कुछ पता ही नहीं और न ही जाने से पहले या बाद आपने कुछ बताया। आप सीधे रौनक से ही क्यों नहीं बात कर लेते।
    उसने कहा- माँ! कैसे बात करूँ वो तो मेरा या घर के किसी भी सदस्य का फोन ही नहीं उठाते। पर मैं जानती हूँ कि आपकी बात कभी नहीं टालेंगे। प्लीज माँ! और रोने लगी बस एक बार घर आने दें माँ फिर मैं कभी घर से बाहर नहीं जाऊँगी। 
          क्या करती रागिनी आखिरकार माँ का हृदय ठहरा उसने कहा- ठीक है आज ऑफिस से आने पर बात करके देखती हूँ। आप कल इसी वक्त फोन कर लेना तब बता दूँगी कि क्या बात हुई? राशि ने भी धन्यवाद और चरणस्पर्श कहकर फोन रख दिया। उसकी आवाज से लग रहा था कि वह बहुत दुखी है तथा अपनी गलती का शिद्दत से एहसास कर रही है।
         शाम की चाय पर रागिनी ने रौनक को दिन की सारी बात विस्तार से बताई और उसे देखने लगी। 
     थोड़ी देर कुछ सोचने के बाद रौनक ने कहा- माँ मुझे राशि से कोई नफ़रत या दुश्मनी नहीं है बस उसे उसकी गलती का एहसास कराना था और आपकी बातचीत से लग रहा है कि वह काम हो गया। इसमें उसके साथ-साथ उसके घर वालों की भी गलती थी इसीलिए मैं किसी से कोई बात नहीं कर रहा था। 
          अब कल उसको क्या बोलना है?
       बोलना क्या है,कह देना जैसे गईं थीं वैसे ही आ जाओ, मैं दरवाजा खोल दूँगी। बस। 
             इधर राशि ने किसी तरह रात गुजारी सुबह से दोपहर होने तक कम से कम दस बार फोन उठाया और रखा होगा अन्ततः एक बजे फोन मिला ही लिया। रागिनी के फोन उठाते ही प्रणाम कर बोल उठी क्या हुआ माँ?
   होना क्या है,आजा, मैं दरवाजा खोल दूँगी। इतना सुनते ही उसके आँसू निकल आए औ द्रवित हृदय से आभार ही जताती रही।रागिनी ने कहा- अब फोन रखेगी भी या आभार ही प्रकट करती रहेगी।
तब उसे फोन बंद करने का ख्याल आया और प्रणाम कर फोन को काटकर भरी दोपहरी में ही घर से निकलने को तत्पर हो गई। सबके बहुत कहने पर भी शाम तक नहीं रुकी।  घण्टे भर बाद घर की घण्टी बजी। रागिनी ने कहा माला जरा देखना दरवाजे पर कौन है? 
      दरवाजा खुलते ही राशि अन्दर आ रागिनी के कमरे में पहुँच कर उनके चरणों में झुक गई। रागिनी ने भी झट उठा उसको सीने से चिपटा लिया। माला दूर से ही सब देख रही थी। 
            राशि के थोड़ा संभलने के बाद माला से राशि का परिचय करवाया और उसके लिए खाने-पीने की सामग्री लाने को कहा। साथ ही राशि से फ्रेश होने को कहा- जा जल्दी से हाथ मुँह धोकर आजा लग रहा है सुबह से कुछ भी खाया पिया नहीं है।
खा पीकर राशि को आराम करने के लिए बोलकर खुद भी सकून से लेट गई। 
       अब तो सबको संध्याकाल की प्रतीक्षा थी। किसी की आँखो में नींद नहीं थी बस खुशी का एहसास था। उधर रौनक भी ऑफिस में काम निपटाते हुए संध्या-सत्कार में संलिप्त घर की कल्पना में खोया हुआ था।ऑफिस ओवर होते ही एक प्यारा सा बुके लेकर घर पहुँचा। जहाँ उसकी माँ की ममता तले मुस्कराती उसकी जीवन संगिनी प्रतीक्षा में दरवाजे पर ही खड़ी  मिल गई, दस्तक देने की भी आवश्यकता न पड़ी। इसे कहते हैं सुविवेक का मधुर रसप्लावित फल। 
       शनैः शनैः स्वर्ग बना यह घर प्रेम सौहार्द अपनत्व और ममत्व का पर्याय बन मूर्तिमान हो उठा ठीक एक वर्ष पश्चात राघवेन्द्र जी की बरसी के अगले दिन राशि ने एक सुकोमल कलिका को जन्म देकर रागिनी और रौनक को खुशियों की अथाह राशि से सराबोर कर स्वयं भी ममत्व के सागर में गोते लगाने लगी। रागिनी ने उस नन्हीं कली का नाम रूपम रख दिया। उसके नामकरण वाले दिन रूपम को अपने अंक में समेटे  अश्रुपूरित नयनो से राघवेन्द्र जी की तस्वीर से मुखातिब हो बोली- देखिए न आपके बच्चों ने मुझे ऐसा अनुपम तोहफ़ा दिया है कि मैं कभी भी अकेली नहीं हो सकती।इतने में राशि औ रौनक भी आकर राघवेन्द्र जी को प्रणाम कर माँ का चरणस्पर्श करते हैं। रागिनी भावविभोर हो सबको आलिंगित कर लेती है और भावातिरेक में रूपम को चूमती ही रह जाती है ऐसा लगता है कि राघवेन्द्र जी भी सबकी खुशी में शामिल हो स्नेहाशीष की बरसात कर रहे हों। 
            सच है बुद्धि औ विवेक के सही प्रयोग के साथ जब ममता ,प्यार-दुलार व वात्सल्य की छांव सन्निहित होती है तो स्वर्गिक आनन्द का कोई पारावार नहीं होता है।
              रचयिता- 
               सुषमा श्रीवास्तव ,रुद्रपुर, उत्तराखंड 
 (मौलिक कृति)
सर्वाधिकार सुरक्षित 
          
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