…….रात गहरी हो चुकी थी और ट्रेन अभी भी कुलधरा स्टेशन नहीं पहुंची थी। मेरा भूख के मारे मेरा बुरा हाल था। बीच-बीच में ट्रेन की सीटी ऐसी लग रही थी जैसे मैं और मेरी भूख पुराने चर्च में लटका हुआ एक घंटा है और यह एक बड़ा सा हथौड़ा है जो कि घंटे को जब चाहे बजा देता है …टन ..न..न
मेरे डिब्बे में मेरे अलावा तीन और सहयात्री थे ।तीनों ही गांव वाले मालूम पड़ रहे थे।तीनों में से दो ने लाल चैक वाला गमछा सिर पर लपेट रखा था ।एक के उबड़ खाबड़ खिचड़ी बाल नजर आ रहे थे, उसकी दाढ़ी भी बेतरतीब ढंग से बढ़ी हुई थी ,आंखें अजीब सी बड़ी-बड़ी लाल रंग की थी। जब जब वह मुझे देखता ,मैं कुछ सिहर सा जाता था। गमछा वाले दोनों आदमी गंदी-गंदी धोती पहने हुए थे। एक के चेहरे पर अजीब सा मुरदापन था,आंखें एकदम शून्य में थी ।ऐसा लग ही नहीं रहा था कि वह सांस भी ले रहा है। दूसरा आदमी ना जाने क्या-क्या सोच कर एक छोटी सी ,खौफनाक सी हंसी बीच-बीच में हंसता था और अपना मुंह ऐसे चलाता था कि मुंह में पान चबाया हो।
लगभग 15 साल बाद में अपनी नानी के गांव जा रहा था। ना जाने कितने सालों से नानी और मामा बुला रहे थे पर मैं जा नहीं पाता था। मैंने अपना एक साबुन बनाने का कारखाना खोल रखा था और मैं उसमें अपना पूरा ध्यान देता था। मेरी मेहनत का ही पल था ,कि कारखाना चल पड़ा था और अच्छी कमाई होने लगी थी। मेरे मम्मी पापा तो पिछले 30 सालों से शहर में आ गए थे। पापा की नौकरी से हम लोग ठीक-ठाक जिंदगी जी रहे थे ।अब मेरे कारखाने की वजह से जीवन स्तर ऊंचा हो गया था। पापा ने भी नौकरी छोड़ दी थी और मेरे कारखाने में मेरा हाथ बंटाने लगे थे ।मैं अपने कारखाने में इतना मसरूफ रहता था कि चाहते हुए भी नानी से मिलने गांव नहीं जा पाता था। नानी ही कभी कभी मामा के साथ मुझसे मिलने शहर आती थी। हां …..मम्मी पापा तो फिर भी गर्मियों के मौसम में मामा के बाग के आम का मजा लेने और सर्दियों में रात के अलाव के किनारे बैठकर गरम मूंगफली का मजा लेने गांव चले जाते थे।
कल जब मामा का फोन आया कि नानी की तबीयत ज्यादा खराब है, मिलने आ जाओ, ना जाने कल क्या हो… यह सुनते ही मेरी आंखों से आंसू की बूंद लुढ़क गई थी और मैंने फैसला कर लिया था कि अगली सुबह ही गांव के लिए चल पड़ूंगा।
शुरू में ट्रेन एक घंटा लेट थी पर धीरे-धीरे बहुत लेट हो गई। बहुत रात हो चुकी थी ।यह सब सोचते-सोचते मैं ट्रेन में बैठा हुआ था कि अचानक ट्रेन रुकने लगी मैंने खिड़की से बाहर झांककर देखा स्टेशन आ चुका था। मैं बाहर आ गया ।यह एक बहुत छोटा सा स्टेशन था। भरपूर अंधेरा था ।केवल एक छोटा सा बल्ब जल रहा था ।स्टेशन के बाहर आकर मैंने देखा कि ढंग से न कोई सड़क है ,और ना ही कोई सवारी। आधी रात हो चुकी थी और नानी का गांव तो यहां से बहुत दूर था ।तभी मैंने देखा कि ट्रेन से उतरकर पांच-छह लोग पैदल ही जा रहे थे ।मैं लपक कर उनके साथ हो लिया। मैंने डर भगाने के लिए उन आदमियों से बात करने की कोशिश की। ……एक से पूछा भाई साहब कुलधरा कितनी दूर है? उसने मुझे बिना देखे ही कहा ,पौना घंटा पैदल चलोगे तो आ जाएगा।……. और आपको किस गांव जाना है? मैंने पूछा तो उसने गर्दन मोड़ कर मुझे घूरा पर कुछ नहीं बोला…. मेरी तो हवा खराब हो गई सो उससे एक कदम पीछे आ गया। थोड़ी देर बाद हम सब एक जंगल में पहुंच गए। वहां तो घुप्प अंधेरा था।
उस दिन बहुत अफसोस हो रहा था कि मैंने सिगरेट पीने की आदत क्यों नहीं डाली ?अगर पीता तो जेब में कम से कम लाइटर या माचिस होती ।टॉर्च के नाम पर एक फोन था जिसकी बैटरी मैंने लेट हो गई ट्रेन में टाइम पास करने के लिए गाना सुनने और वीडियो देखने में खत्म कर दी थी ।जल्दी जल्दी में घर से पावर बैंक लाना भी भूल गया था। इसलिए मेरा फोन भी इस समय एक अंधेरा डब्बा था।
तभी मुझे महसूस हुआ कि मैं अकेला चल रहा हूं, साथ वाले चार पांच लोग न जाने किस तरफ मुड़ लिए और मैं अपनी उधेड़बुन में ना जाने किस तरफ चल पड़ा। अब तो मेरा पूरा बदन पसीने से तरबतर था। डर के मारे तेज तेज सांस ऊपर ही ऊपर चल रही थी पेट तक नहीं जा रही थी। तभी अचानक याद आया कि जब मैं छोटा था तब नानी कहती थी। जब कोई भी कष्ट हो हनुमान चालीसा का पाठ किया करो। मैंने जोर जोर से बोलना शुरू कर दिया……… जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ……..जय हनुमान ज्ञान गुण सागर …..। घबराहट के मारे आगे की हनुमान चालीसा याद ही नहीं आ रही थी। तभी एक पेड़ से कुछ सरसराहट की आवाज आई तो मैं 100 की स्पीड पर दौड़ने लगा ।दो तीन बार ठोकर भी लगी पर मजाल जो मैंने रुक कर सांस भी ली हो।
तभी मुझे एक जगह हल्की सी रोशनी आती हुई दिखाई दी। उस समय मुझे ऐसी खुशी हुई, जो पहली बार हाईस्कूल की बोर्ड परीक्षा का रिजल्ट निकलने पर उस विद्यार्थी को होती है जिसके पेपर खराब हुए हो ।पर रोल नंबर उसे पास दिखा रहा हो।
वह रोशनी एक झोपड़ी से आ रही थी। मैं सीधे उसी झोपड़ी के पास जाकर रुका और हांफते हांफते ही जोर जोर से चीखने लगा ……कोई है ….मुझे रात भर का आसरा दे दो…… आपका एहसान नहीं भूलूंगा…… खोलो…. दरवाजा खोलो……। तभी दरवाजा खुला ,एक औरत हाथ में एक लैंप लेकर बाहर आई। उस वक्त मुझे उसको देखकर जो खुशी हुई थी। उसके लिए मुझे शब्द ढूंढे नहीं मिल रहे थे ।वह बड़ी सौम्यता से बोली ,क्या बात है भाई?…. साहब आप क्यों इतना घबराए हुए हैं ….मैंने कहा मुझे कुलधरा अपनी नानी के गांव जाना है। रास्ता भटक गया हूं, और रात भी बहुत हो चुकी है ।क्या आप सुबह होने तक अपनी झोपड़ी में मुझे पनाह देंगी। आप जो भी किराया कहेंगी ,मैं चुकाऊंगा। वह औरत हंसते हुए बोली …आप यहां ठहर जाइए और किराए की क्या बात है ।मेहमान तो भगवान होता है। आज रात आप इस झोपड़ी के लिए भगवान हैं।……आइए …वह बोली।उसकी बातें सुनकर मुझे ऐसी सांत्वना मिली जैसे आठवीं में पहला पेपर जो कि गणित का था ।खराब होने पर जब मैं मुंह लटकाए घर पहुंचा था तो मां ने कहा था ।मैंने आज भगवान से तेरी परीक्षा के लिए प्रार्थना कर ली है ।सब ठीक होगा। मुंह मत लटका।
वह औरत मुझे अंदर ले गई। झोपड़ी अंदर से साफ सुथरी थी। वहां एक चारपाई बिछी थी ,उसके एक तरफ एक पालना था, जिसमें एक बच्चा सोया हुआ था। झोपड़ी के एक कोने में मिट्टी का चूल्हा था ।उस पर एक मिट्टी की हांडी रखी हुई थी। चूल्हे के पास एक और मिट्टी का बर्तन रखा था। कोने में मिट्टी का घड़ा था। उस औरत ने मुझे चारपाई पर बैठने के लिए कहा, घड़े से पानी निकालकर पिलाया जो मुझ जैसे प्यासे और डरे हुए इंसान को शरबत से कम नहीं लग रहा था। वह मुझसे बोली भाई साहब बाहर चलकर हाथ मुंह धो लीजिए। मैं झोपड़ी के बाहर आया ,तो वह औरत एक बर्तन में पानी लेकर मेरे पीछे पीछे आई और मेरे हाथ पैर धुलवाए ।अंदर जाकर उसने एक पीतल की थाली में हांडी से सब्जी निकाल कर रखी और चार रोटी रखी ।मैंने चारपाई के नीचे अपना बैग रखा और चारपाई पर बैठ कर खाना खा लिया ।ना जाने कितने घंटों से मैं भूख से तड़प रहा था ।वह रोटी सब्जी मुझे फाइव स्टार होटल की व्यंजनों से कुछ अधिक ही लग रही थी ।जब मैंने खा लिया तो उस औरत ने मुझे बाजरे का एक लड्डू दिया। मेरा पेट भर चुका था इसलिए मैंने आधा ही लड्डू खाया और बचा हुआ आधा अपने बैग से कागज निकालकर उस में लपेटकर चारपाई के सिरहाने रख लिया और सोचा, सुबह खा लूंगा। चारपाई पर लेटते ही मुझे गहरी नींद आ गई।
……..अचानक ही मेरी आंख खुली क्योंकि वह बच्चा पालने में जोर जोर से रो रहा था। मैंने देखा, पालना मेरी चारपाई के एक तरफ था, दूसरी तरफ वह औरत जमीन पर बिस्तर लगाकर सोई हुई थी। कोने में लैंप की हल्की सी रोशनी थी। बच्चे की रोने से वह औरत भी जाग गई। मैंने उस औरत से कहा आप लेटी रहिए मैं पालना हिला देता हूं, शायद बच्चा सो जाए। औरत बोली …..नहीं नहीं… आप सो जाइए। मैं यहीं से पालना हिला देती हूं ,….और अचानक मैंने देखा…… कि उसका दायां हाथ इतना लंबा हो गया कि उसके बिस्तर से, मेरी चारपाई के ऊपर से होता हुआ उस बच्चे के पालने तक पहुंच गया और पालना हिलाने लगा।
मेरी आवाज मेरे गले में फंस गई ।हाथ पांव फूल गए। मैं भागना चाहता था, पर मेरे पैर जम गए ।बदन का खून बर्फ बन गया और मुझे होश ही नहीं रहा।
……… जब मुझे होश आया तो मेरे चेहरे पर सूरज की किरणें पड़ रही थी। मैं घास पर पड़ा था, मेरे पास मेरा बैग भी पड़ा था। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था, कि मैंने सपना देखा है या सच था। तभी मेरी नजर एक मुड़े हुए कागज पर पड़ी ,मैंने उसे खोला और देखा उसमें बाजरे का आधा लड्डू था।
स्वरचित
साधना सिंह