पूछा है इन आँसुओं से मैंने,
जो बहते रहते हैं अक्सर,
खामोश इन आँखों में,
झांककर देखा है मैंने,
पर्दा करने वाली इन पलकों को,
छूकर किया है अहसास मैंने।
क्यों झुकी हैं ये इतनी,
क्यों मायूस है ये चेहरे,
क्यों नहीं कहते हैं ये ,
अपने मन की कहानी,
क्यों नहीं बढ़ाते ये कदम,
हाँ, मैंने इनको करीब से देखा है।
उन आँसुओं को गिरते हुए,
छुपाकर अपने प्यार को,
दो गज अपनी जमीन को,
अपने सीने से चिपकाये,
सींचते हुए अपने खून-पसीने से,
मगर उफ तक नहीं करते हुए।
सहनशीलता की इस मूर्ति को,
हंसकर सहते हुए अपनी पीड़ा को,
समाज के तानों को को सुनते हुए,
बड़े लोगों के जुल्म को सहते हुए,
नहीं मांगते हुए इंसाफ और मदद,
शायद ये आंसू डरते हैं कानून से,
शायद किस्मत में यही लिखा है।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
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