तलाशती रहीं जल की बूंदें,
भटक रहीं निगाहें राहों में ..!
आहें भरती ,झोली खाली,
ना पुष्प ना सुरभी कहीं डाली -डाली..!
सूखे पोखर सूखी बहती नदियां ,
तालाब भी सूना बिन मच्छलियां..!
रुखी -रुखी आस टूटी ,सूखी -रोटी ,
नहीं अन्न -धन उगे, खरी कसौटी ..!
जब,पिछला सावन बरसा था,
बूंद- बूंद मन हर्षित मौसम था ..!
अब,लू आग दहका रही तन में,
तपी ,धूप अंगार बनी दिवस में..!
सदियों से धरा निर्झर मगन बहती ,
झरने ,नदियां, पोखर अंक में ले समाती..!
आये कौन पथिक ये ..?
प्यासे कंठ अतृप्त नैन जल से,
ज्यों ,टपक पड़ी कुछ आस स्रोत से ..!
चहचहा उठा संगीत बजता ,
चींचीं के शोर मधुर कलोल करता ..!
जल मधुरस छूकर प्राणी तृप्त हुए,
एक बूंद प्यार की, एक बूंद राग लिए..!
सुनंदा ☺️