अब मैं उसे…. 
कहीं ढूंढता ही नहीं
मेरे जेहन के अलावा
शायद अब उसका
कोई वजूद नहीं।
नहीं आता मुझे कहना
बस तूं मेरे आस पास रहना
हर पल जरूरत थी तेरी,
अजीब है मां 
अब तूं पानी के घर में 
रहती है
अफसोस “मेरी मां”
मेरी “चश्मे-तर” में रहती है..।
*”चश्मे-तर”  – भीगी हुई आंखे*
आपका आशीर्वाद.. सदैव मेरे साथ 🙏🙏😥😥
डॉ0 अजीत खरे
Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *