कुरुक्षेत्र बना यह ह्रदय-स्थल,
हार-जीत का परिणाम लिए,
धर्म का ध्वज लिए खड़ा युधिष्ठिर,
दुर्योधन खड़ा अभिमान लिए।
हृदय-स्थल के इस कुरुक्षेत्र में,
दोनों ही योद्धा बड़े बलवान,
आत्मा चुनती सत्य का पथ,
चंचल मन भागे गुमान लिए।
मन जानता है जीत होगी उसी की,
जिस ओर है कृष्ण का वरदान हाथ,
लालसा के चक्रव्यूह में फंसा ये मन,
चल पड़ा अधर्म को साथ लिए।
क्या नहीं जानता यह मानव मन,
है अधर्म, अनीति पतन की राह,
बढा जा रहा है फिर भी निरंतर,
सुख की खोज में अनंत चाह लिए।
स्वरचित रचना
रंजना लता
समस्तीपुर, बिहार