कर्म फल सब को मिलता,
राजा हो चाहे ये कोई रंक।
ऊपर वाले के खाते में जो,
लिख जाता बदले न अंक।
अच्छे कर्मों का फल मिलता,
बुरे कर्म का भी फल मिलता।
जो जैसा भी कर्म है करता,
उसको वैसा फल भी मिलता।
मनुष्य योनि में जन्म मिला,
प्रभु भक्ति धर्म कर्म करने को।
पूर्वजन्म के पुण्य के कारण,
पुन-2 भव सागर से तरने को।
लंका का अधिपति रावण,
बलशाली ज्ञानी विद्वान रहा है।
सीता हरण का फल पाया,
बुरा कर्म अभिमान भरा रहा है।
विभीषण के सद्कर्मों का,
फल प्रभु दिल में मान दिलाया।
अच्छे कर्मों के कारण ही,
भक्ति भाव राजपाट सब पाया।
महाभारत के दुर्योधन ये,
बुरी दृष्टि लालची कर्मों से भरे।
मर्यादा न लाज रही उनमे,
भरी सभा द्रौपती का चीर हरे।
पांडवों को बनवास दिया,
लाच्छा गृह में उन्हें मारना चाहे।
अपने कर्मो का फल पाये,
न जान बची न राज पाट पाये।
कंस के कर्मों को देखें तो,
कितना पाप अत्याचार किया।
सगी बहन के सातों बच्चे,
उसने पृथ्वी पे पटक मार दिया।
वासुदेव देवकी को जेल में,
उसने बंदी बना कर दी यातनायें।
श्री कृष्ण पैदा हुए हैं आठवें,
देने करम फल दुस्टों को सजायें।
राजा रानी का किस्सा देखें,
फिल्मों ड्रामें ये वैताल कहानियाँ।
अच्छे कर्मों का अच्छा फल,
बुरे कर्म के बुरे फल हैं जुबानियाँ।
जीवन में जो सुख से रहता,
उसके अच्छे कर्मों का ही फल है।
आँगन में खुशहाली उन्नति,
धर्म कर्म सद्कर्मो का ही फल है।
रोग दोष चहचाचर पतन,
अधर्म कर्म बुरे कर्म का ये फल है।
दामन में दाग चरित्र गन्दा,
बुरी सोच कुकर्मो का ही ये फल है।
चाहें तो आप एक गीत कहें,
बुरे कर्मो का होता ही बुरा नतीजा।
आयें मिल कर दोनों गायें ये,
क्यों भाई चाचा हाँ भई हाँ भतीजा।
बुरे कर्मों और पापों का फल,
इंसान भोग रहा फिर भी ना समझा।
आँधी तूफ़ां यह बाढ़ कोरोना,
सृष्टि इंसा से कैसे नाराज ना समझा।
हबस छिनैती लूटमार क़त्ल ये,
जबर्दस्ती कब्ज़ा बलात्कार बढ़ा है।
कलयुग में बुरे कर्मों का ग्राफ,
कुछ ज्यादा ही मेरे सरकार बढ़ा है।
पूरी दुनिया भोग रही है आज,
अपने-2 धर्मी अधर्मी कर्मो का फल।
यह तो सब को ही है मिलता,
बचे न कोई चाहे आज मिले या कल।
रचयिता :
डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पीबी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
(शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी)