जैसे रहते सीप में मोती
माँ की दुनियां वैसी ही होती
छिपाए रखती हैं वो अपने भीतर बच्चों को
दुनियां भर से
सुरक्षित उस गहराई में
हमेशा
उस कठोर तपस्या से
हमारे अस्तित्व को
बचाती है
बनाती है चमक को ताकि
बढ़ती रहे हमारी क़ीमत
ढेर थपेड़े भी लहरों के
नहीं खोल पाते माँ के आवरण को
संरक्षित रखती है हमेशा संतति को
दुनियां रूपी समुद्र में कहीं छिपाए,
इक समय ऐसा भी आता है
जब बेदर्द तड़प से मोती निकाला जाता है
उस सीप के आवरण को हटा कर
अफ़सोस कहीं भुला दिया जाता है…
क्या बच्चों को मोती बनाने के बाद
उस सीप सी माँ को गुमनाम हो जाना चाहिए …!!
माँवां ठंडीयां छाँवां
कि छाँवां अब कौन करे..?
भारती प्रवीण..✍️💕