देखो पावन महाकुंभ यहां,ये पर्व बड़ा अति विशेष है।
कुंभ है संस्कृति की जननी,सब पर्वो में यह एक है। जाति–पाति को भुलाकर, गले लगाती,नहीं शंका लेश है। और हरती जन–जन पीड़ा, दूर करती सबकी की क्लेश है।लगाओ डुबकी गंगा मईया में,मिट जाती मन की सारे द्वेष है।
हो जाता तन मन सारा निर्मल,मानवता की यह देती शुभ संदेश है।
निहारती खड़ी है प्रयाग की धरती, देख रही चहुं ओर अनिमेष है।
सबके भावों को पढ़ती अंतर्मन से, सतरंगी सजी है इंद्रधनुषी वेश है।
जैसे ही पड़ती संतो की चरणरज यहां,हो जाता शुभ इनका परिवेश है।
सैकड़ों वर्ष बाद आया है शुभ घड़ी,लो आशीष अभी अनुग्रह अशेष है।
ईश्वर कुमार साहू
डोंगरगांव(छत्तीसगढ़)