जगी-जगी सी आंखों में,
सजते हैं खूबसूरत लम्हें,
कभी गुजरे हुए पल के,
कभी आने वाले कल के।
इस भागती-दौड़ती जिंदगी से,
ठहरने को जी करता है,
चलूं बचपन की गलियों में,
जहां निश्छल हंसी बसता है,
मां के गले में बाहें डाल,
झूलूं झूला सब भूल के,
कभी गुजरे हुए पल के,
कभी आने वाले कल के।
जगी-जगी सी आंखों में,
सजते हैं खूबसूरत लम्हें।
मअसलों को ताक पर रखकर,
अल्हड़ बचपन को जी लूं मैं,
सखियों संग मस्ती में घूमूं,
नीले आसमां को छू लूं मैं,
कर लूं थोड़ी सी शैतानी,
आंगन में अपने बाबुल के,
कभी गुजरे हुए पल के,
कभी आने वाले कल के।
जगी-जगी सी आंखों में,
सजते हैं खूबसूरत लम्हें।
आने वाले कल की फ़िक्र में,
खूबसूरत लम्हें बस छूटते हैं,
चलो अपने हर पल को,
खूबसूरत लम्हों से जोड़ते हैं,
खुशी नहीं बिन गम के मिलती,
फूल नहीं बिन शूल के,
कभी गुजरे हुए पल के,
कभी आने वाले कल के।
जगी-जगी सी आंखों में,
सजते हैं खूबसूरत लम्हें।
स्वरचित रचना
रंजना लता
समस्तीपुर, बिहार