अगले दिन रमेश और सुनंदा ने घर को सही से जमाकर पूजा की तैयारी शुरू कर दी ।
रमेश : ” सुनंदा तुम प्रसाद और पंडित जी के लिए खाना बनाकर तैयार कर दो , तब तक मै श्रुति को तैयार कर दूंगा और हां पंडित जी एक तक आ जायेंगे । “
सुनंदा काम करते हुए : ” हां ठीक है ! “
सुनंदा रसोई में जल्दी – जल्दी काम करने लगी । तभी रमेश की आवाज आई !
” सुनंदा हम मार्केट जा रहे हैं , पूजा के लिए फूल और फल लेकर जल्दी आते हैं । ” रमेश घर से बाहर निकलते हुए कहा , जिससे की सुनंदा पूरी बात नहीं सुन पाई ।
” हां ठीक है , पर पंडित जी के आने से पहले आप आ जाना ! वरना श्रुति मुझे काम करने नहीं देगी ! ” सुनंदा खीर में चीनी मिलाते हुए कहा ।
” बस थोड़ी देर और फिर ये तैयार है , तब तक मैं पुड़िया छान लेती हूं ! ” सुनंदा परात में आटा निकालकर गूंथने ही जा रही थी कि उसे रोने की आवाजें सुनाई दी ।
” रोने की आवाज…! शायद श्रुति सोकर उठ गयी होगी , मुझे ना देखकर रो रही होगी ! ये काम थोड़ी देर बाद करूंगी पहले श्रुति को तैयार कर देती हूं ! ” सुनंदा हाथ साफ कर कमरे की ओर बढ़ गयी ।
” श्रुति बेटा मम्मा आ गई है अब रोना बंद करो ! ” सुनंदा कमरे का दरवाजा खोलते हुए कहते – कहते चुप हो गई ।
” श्रुति..! बेटा कहां हो तुम ! ” सुनंदा परेशान होती हुई आवाज देने लगी तभी..!
” ही..ही..ही..! ” किसी बच्चे के हंसने की आवाज कमरे के बाहर सुनाई दी ।
” अच्छा…बदमाश ! तु कमरें के बाहर है ! श्रुति बेटा मम्मा को बहुत काम है , मम्मा को परेशान मत करो बेटा और सामने आ जा..ओ ! ” सुनंदा अपनी घर में ढूंढती हुई कहने लगी ।
” टंग..!धड़ाम..! ” रसोई से आवाज आने लगी ।
” श्रुति.. अब क्या गिरा दिया बेटा ! ” सुनंदा रसोई की ओर तेज कदमों से बढ़ने लगी और रसोई की हालत देखकर उसे रोना आ गया । आटे से भरा परात उल्टा पड़ा हुआ था और आटे के साथ पानी से रसोई पूरी फैल चुकी थी ।
” श्रुति..तुरंत मेरे सामने आओ वरना मम्मा आज तुम्हारी पिटाई करेंगी ! ” सुनंदा गुस्सा करते हुए कहने लगी ।
” उं..उं..उं..! ” सुनंदा को पीछे से किसी कि रोने की आवाज सुनाई दी जिसे सुनकर उसे दया आ गयी ।
” मेरा बच्चा , मैं तुम्हारी पिटाई नहीं करूंगी बेटा पर अब रोना बंद करो ! सुनंदा पीछे पलटते हुए कहने लगी ।
सुनंदा के शरीर में दहशत की एक लहर दौड़ गयी । क्योंकि इस वक्त उसके पीछे कोई नहीं था ।
” अरे भाग्यवान अब किसकी शामत आ गयी तुम उसकी पिटाई करने पर उतारू हो गयी । ” रमेश अंदर आते हुए कहने लगा ।
” श्रुति..! ” सुनंदा इतना ही कह पाई और रमेश की ओर देखकर उसका अपने आप सील गये ।
” श्रु..ति..! तुम्हारे साथ है ,पर वो तो घर पर थी ना ! ” बोलते हुए सुनंदा की जबान कांपने लगी थी ।
” ये देखो बेटा , मम्मा की आंखों के साथ – साथ याददाश्त भी कमजोर हो गयी है ! मैं तुम्हें बताकर तो गया था कि , हम दोनों मार्केट जा रहे हैं । “
रमेश बेफिक्री से कहता हुआ सामान रखने लगा और यहां सुनंदा के पैर जमीन पर चिपक गये थे । उसमें इतनी हिम्मत भी नहीं रही की वो रमेश को जवाब दे सकें ।” तुम यहां ऐसे क्यों खड़ी हो ! पंडित जी पहुंचने ही वाले हैं तुम जाकर तैयार हो जाओ । ” रमेश बाहर निकलते हुए कहने लगा ।
” मैंने जो सुना वो मेरा वहम हरगिज नहीं था , हो ना हो यहां कुछ तो गड़बड़ है । शायद मेरी समस्या पंडित जी समझ जाए और कोई उपाय बता दें । ” सुनंदा सोचते हुए रसोई में पहुंची और जल्दी – जल्दी फर्श की सफाई करने लगी ।
सुनंदा तैयार होकर दरवाजे पर खड़ी रही लेकिन ना तो पंडित जी आए ना ही रमेश आया । सुनंदा , श्रुति को बेबी फ़ूड खिलाकर सुलाने के लिए टहलने लगी थी कि अपने सामने रमेश को देखकर वो गिरते – गिरते बची ।
” रमेश…! क्या हुआ है तुम्हारे कपड़े पर खून ! मेरा मन बहुत घबरा रहा है रमेश जल्दी बताओ क्या हुआ है ! ” सुनंदा आंखों में आंसू लाते हुए कहने लगी ।
” सुनंदा बहुत बुरा हुआ है , हमारे घर पंडित जी आ रहे थे उनका इस घर से थोड़ी दूर पर ही जबरदस्त हादसा हो गया उन्हें मैं कुछ लोगों के साथ मिलकर हॉस्पिटल पहुंचाकर आ रहा हूं । “
रमेश हैरान परेशान सा कहने लगा ।
रात के एक बज रहे थे और सुनंदा की आंखों से नींद कोसों दूर थी । उसने पास सो रही नन्ही श्रुति को देखा जो इस वक्त सो रही थी और नींद में कभी – कभी मुस्कुरा रही थी । रमेश दोपहर हुए हादसे को भुलाकर बेफिक्री की नींद सोया हुआ था ।
हर ओर रात की खामोशी छाई हुई थी । लेकिन आज रात की खामोशी सुनंदा के दिल की धड़कन को बढ़ा रहा था ।
” चर्र..चर्र..चर्र…! ” आवाज ने सुनंदा का ध्यान अपनी ओर खींचा ।
सुनंदा ने देखा की कमरे का दरवाजा अपने आप धीरे – धीरे खुल रहा है । वो बिस्तर से उठकर बैठ गयी और दबे पांव दरवाजे की ओर बढ़ने लगी ।
” उं..उं..उं…! ” कमरे के रोने की आवाज दोबारा सुनाई दी ।
” बच्चे की रोने की आवाज ! ऐसा लग रहा है जैसे कोई पांच – छ: साल की बच्ची रो रही है ! ” सुनंदा ने एक बार पलटकर निश्चिंत सो रही अपनी बेटी को देखा और कमरे के बाहर आ गयी ।
इस वक्त हॉल में अंधेरा पसरा हुआ था । लेकिन बाहर स्ट्रीट की रौशनी छनकर घर पर आ रही थी जिससे सुनंदा को अंधेरे में देखने में आसानी हो रही थी तभी ।
” आह…मां…बचाओ मुझे , मुझे बहुत दर्द हो रहा है ! मां…बचाओ…! ” दर्द से बिलबिलाती हुई आवाज सुनकर सुनंदा कांप गई ।
सुनंदा आवाज की दिशा में बढ़ने लगी कि !
” आह्…! ” उस बच्ची की एक आखिरी आवाज आई और सबकुछ शांत सा हो गया । बाहर तेज बारिश हो रही थी और इस वक्त सुनंदा के अंदर भी कुछ टूट रहा था ।
क्रमश:
