आपकी तरहां बिल्कुल आप सा ही,
मैं भी हूँ एक इंसान इस जमीन पर,
आप अमीर है तो मैं दौलत दिल की,
मैं भी आपकी तरहां मालिक हूँ अपना,
आप गरीब है तो मैं भी गरीब झूठ का
बिल्कुल खाली हाथ आपकी तरहां मरने पर,
गुलाम हूँ मैं भी आपकी तरहां अपने रब का,
और जी रहा हूँ मैं भी जी आजाद आपकी तरहां।
फिर भी आप समझते हो मुझको अलग इंसान,
मुझमें भी तो है एक इंसान मौजूद आपकी तरहां,
लेकिन ना मैं हिन्दू हूँ और ना ही मुसलमान,
मैं स्वयं गुरु हूँ हर दीन का इंसानियत के लिए,
आबाद हूँ मैं भी आपकी तरहां यहाँ कहीं पर,
और जी आजाद हूँ निभाने को अपना फर्ज।
लगते हैं यहाँ आपकी तरहां नारे मेरे भी,
निकलता हूँ बाहर तो होती है भीड़ मेरे साथ भी,
जिंदाबाद, जिंदाबाद कहते हुए मुझको सच में,
हाँ ,यह सच है कि मैं बोलता कम हूँ ,
फिर भी देखता हूँ सब कुछ आपकी तरहां,
और समझता हूँ सब कुछ आपकी तरहां,
सच मैं भी एक हस्ती हूँ आपकी तरहां,
इस जमीं पर ,जी आजाद इस हिंदुस्तान में।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)