“गौरी के आग्रह पर शनिदेव ने बस एक झलक ही गणेश को देखा।जिसके फलस्वरूप तुरंत ही आपसी मतभेद के कारण गणेश का सिर काट दिया गया।जिससे संपूर्ण संसार में कोलाहल मच गया।गौरी अत्यधिक क्रोधित हो गई और संपूर्ण संसार का विनाश करना चाहा। गणेश का सिर नारियल में परिवर्तित हो गया। अब समस्या उत्पन्न हो गई कि गणेश को किसका सिर लगाया जाय? देवताओं ने मंत्रणा कर के कहा कि, जो माता अपने शिशु की ओर पीठ करके सो रही हो, उस शिशु का सिर लगाया जा सकता है।तभी भगवान विष्णु ने देखा कि एक हथिनी अपने शिशु की ओर पीठ करके सो रही है। विष्णु ने तत्काल उस छोटे हाथी का सिर काट कर गणेश के धड़ से जोड़ दिया। फिर अभिमंत्रित जल छिड़ककर उन्हें पुनः जीवित कर दिया।।जब हथिनी ने विलाप किया तो, केकड़े का सिर काट कर हथिनी के बच्चे को लगा दिया। केकड़े को वैसे ही रहने दिया। इसलिए आज तक केकड़े का सिर नहीं है। केकड़े ने कहा कि मैं भोजन की तलाश कैसे करूंगा तो उसके शरीर में ही आंखें लगा दीं।।गणेश बालपन से ही शरारती होने के कारण माता-पिता का लाड़ला भी होता है।लाड़ले पन में कोई भी मांग, हठ पूर्वक मनवा लेते हैं।गौरी सहर्ष ही गणेश की हर इच्छा पूरी कर देती हैं।।कार्तिक जब तारकासुर को मारकर माता पिता के पास आते हैं, अपने छोटे भाई को देखकर अति प्रसन्न होते हैं। किंतु…। किंतु जब गणेश को माता-पिता के नजदीक उनसे लिपटे हुए देखते हैं तो, उनका मन भी करता है।माता-पिता उन्हें भी गले से लगाएं। वो उनको भी गोद में बैठा कर लाड़ लड़ाएं। परन्तु सहज भाव से संकोच में पड़कर ऐसा नहीं कर पाते।जब गणेश किसी वस्तु के लिए हठ पूर्वक मां से मांगने लगते हैं तो कार्तिक भी ऐसा करने का सोचते हैं। परन्तु कार्तिक संकोच वश ऐसा नहीं कर पाते। गणेश, गौरी से कोई भी पकवान बनाने के लिए जिद्द करते तो, गौरी झट से बनाने लगती।ऐसा देखकर कार्तिक का मन भी करता परन्तु वह कह नहीं पाते।चूंकि वो कृतिकाओं के साथ पल बढ़कर बड़े हुए हैं।जैसे कृतिकाओं से घुल-मिल गए वैसे महादेव और गौरी से नहीं घुल पाए।धीरे-धीरे समय व्यतीत होता रहा, परन्तु वह अपने मन की बात कह नहीं पा रहे थे।माता-पिता समझ नहीं पा रहे थे।एक दिन झुंझलाहट में आखिरकार महादेव और गौरी से कह बैठे। आप लोग गणेश को मुझसे ज्यादा प्रेम करते हैं।मुझे प्रेम नहीं करते।महादेव कहते हैं!ऐसा नहीं है पुत्र। हम आप दोनों से बराबर प्रेम करते हैं।आप बड़े हो गए हैं।बड़ा होने के बाद जो संकोच, जो सोच समझ की शक्ति आती है, उसमें हम लड़कपन भूल जाते हैं।इस लिए आप ऐसा कह रहे हैं।आप स्वयं देख रहे हैं। गणेश जिस कार्य को हठ पूर्वक मनवा लेते, वही आप सोच समझकर चुप रह जाते हैं।हम-दोनों ही आप से बहुत प्रेम करते हैं।कार्तिक चुप रह जाते हैं। पिता को कोई जवाब नहीं देते।वो सोचते हैं, ज्ञानी पुरुष को ऐसे समय में चुप रह जना चाहिए। अन्यथा रिश्ते में दरार उत्पन हो जाएगी।कदापि हम अपने पिता के तर्क से संतुष्ट नहीं हैं किन्तु।ज्ञानी पुरुष विवाद में पड़कर रिश्ते ख़राब नहीं करते। अन्यथा,चुप रहकर एक और मौका देते हैं। रिश्ते सुधारने हेतु।ऐसा सोचकर कार्तिक चुप रह गए।।क्रमशः
अम्बिका झा ✍️
बेहतरीन प्रस्तुति बेहतरीन प्रस्तुति
Bahut hi khoobsurat kahani