बचपन , वो कोरा कागज़ है, जिस पर हमारे साथ साथ और भी कई हाथ हैं जो जाने अंजाने बहुत कुछ लिख देते हैं। ये एक ऐसी खुली किताब है जहां न द्वेष है न दर्द है।मेरी उसी बचपन की किताब को आज मैं खोलना चाहूंगी – वो पहली कविता ” उठो लाल अब आंखें खोलो पानी लाई हुं मूंह धो लो, बीती रात कंवल दल फूले उनके ऊपर भॅंवरे झूले ..” राइम्स तो अंग्रेजी में खूब पढ़ी पर जो बात हिन्दी में है वो और कहां! मां तो मां होती है !

मेरे दिल को छू गई पाठ्यक्रम की वो कविता जो अपने आप में अनन्य थी, आज भी याद है मुझे, ” चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं… मुझे तोड़ लेना बन माली उस पथ पर देना तुम फेंक मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएं वीर अनेक ” , ‘ पुष्प की अभिलाषा’ इस कविता ने मेरे अंदर देशभक्ति की ज्योति जागृत कर दी। छोटी सी उमर में देश के लिए कुछ कर गुजरने को मन व्याकुल हो उठता था ।

फिर कबीर के दोहे, मुंशी प्रेमचंद की कहानियां ऐसे लेखक थे जो जिंदगी से रूबरू करवाते थे। जीवन जीने का ढंग सीखाने का काम करते थे। जब मां की या दादी की उंगलियां रोटी सेकते समय जलती हो तो एक संतान का क्या कर्तव्य है ? जब हमारे साथ निंदक हो तो उससे भी हमें लाभ हो सकता है ये सभी बातें हम अपने जीवन में किताबों के माध्यम से ही आत्मा में उतार सकते हैं।

पन्ना धाय एकांकी यह सिखाती है कि मातृत्व से भी बड़ा है देशप्रेम जहां एक मां अपने बच्चे को देश के लिए न्योछावर कर देती है और अंदर की चित्कार को आंख के आंसू में परिवर्तित नहीं होने देती ।

सच इन पुस्तकों ने हमें ज्ञान के साथ साथ दुनिया से मिले ज़ख्मों पर मरहम लगाने का काम किया है। ये हमारी सच्ची दोस्त हैं। हमारी जिंदगी की किताब यदि कभी प्रेरणा के शब्द चाहती हो तो हमें किताब ही वो प्रेरणा दे सकती है। क्योंकि कई बार हमें किसी की सलाह में मतलब दिखता है या वो हमारी परिस्थिति नहीं जानते ये सोच कर ही हम ध्यान नहीं देते परंतु एक किताब निष्पक्ष है सत्य से अवगत कराती हैं और यदि मर्म समझ में आ जाए तो बेहतरीन सलाहकार भी हैं, किताबें ।

दोस्तों, आशा करती हूं कि आपकी बेस्ट फ्रेंड भी किताबें ही होंगी और आपने भी शायद कुछ ऐसा अनुभव हासिल किया हो उन किताबों से। अपने अनुभव साझा अवश्य कीजिएगा, नीचे कमेंट बॉक्स में, और यदि आपको मेरी रचना पसंद आई हो तो मेरे साथ बने रहने के लिए मुझे फोलो करना ना भूले ।धन्यवाद जी

आपकी अपनी

(deep)

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