मैंने तो सिर्फ एक ही किताब पढ़ी है
और वह है तेरे दिल की पवित्र किताब
उसे पढ़ने के बाद इच्छा ही नहीं हुई
कुछ और लिखा हुआ पढ़ने की
मेरी सारी दुनिया इसी में तो बसी है
तुझसे ही मेरा गम तुझसे ही खुशी है
इस किताब के हर शब्द में मुहब्बत है
हर अक्षर मेरे लिए तो इबादत है
यहां श्रंगार रस का सागर उफन रहा है
भावनाओं की कश्ती में इश्क पल रहा है
सरलता के सौंदर्य की चांदनी फैली हुई है
इसी से ही तो इन लबों पे हंसी खेली हुई है
त्याग के पहाड़ों से बहारें आ रही हैं
सेवा की घंटियां मीठे फसाने सुना रही हैं
सारे रसों की गंगा यहीं से तो निकलती हैं
मेरी आंखें सिर्फ और सिर्फ तुझको ही तो पढ़ती हैं
हरिशंकर गोयल “हरि”