श्रावण मास जिसे हम सावन माह भी कहते हैं । जिसे अक्सर लोग पवित्र माह मानते हैं और माने भी क्यूं ना ये माह महादेव की भक्ति करने का और उनकी कृपा पाने का भी माह है । जहां इस सावन माह को शिव का माह भी कहते हैं वहीं छत्तीसगढ़ के कुछ इलाकों में सावन माह शुरू होने के एक दिन पहले ही अपने – अपने घरों के बाहर एक मानवकृति बनाते हैं । जिससे की कोई पैशाचिक शक्ति उस घर में प्रवेश ना करें और एक उस इलाके में एक चेतावनी देते हैं , कि कोई भी व्यक्ति आठ बजे के बाद अपने घरों से बाहर नहीं निकलेंगे । क्योंकि सावन माह में अधिकतर तांत्रिक जो नकारात्मक शक्तियों के माध्यम से दूसरों को नुकसान पहुंचाते हैं या अपनी बला दूसरों पर डालते हैं ।

एक अंधेरे कमरे में आग की लपटे रूक – रूक कर तेज हो रही थी । मंत्रों की धीमी मगर कठोर स्वर निरंतर चलने के साथ मंत्रों के पूरे होते ही  आग में कुछ डाला जा रहा था । जिससे आग की लपटे सामान्य से दोगुनी हो उठती और उसी उठती लपटों से कुछ दूर एक साया सुखासन की स्थिति में बैठकर कुछ क्रिया सम्पन्न कर रही थी । अचानक उस साये से मंत्रों की आवाज आनी बंद हो गयी । तभी…

” इस घर में रहने वाली नकारात्मक शक्तियों चाहे वो भूत , पिशाच , चुड़ैल या किसी भी योनि की नकारात्मक शक्तियां हैं । मैं उन्हें यही छोड़ती हूं , यहीं छोड़ती हूं और यहीं छोड़ रही हूं और अपने साथ लेकर जा रही हूं सिर्फ श्री शक्ति । “

उस साये ने दृढ़ता पूर्वक कहा और अपने आसन से उठ गयी ‌। कुछ देर बाद हवन सामाग्री सहित अपनी कुछ निजी वस्तुओं के साथ वो उस घर से बाहर आ गयी । एक आखिरी बार उसने मुड़कर अपने घर को देखा , उसे देखकर उसके शरीर में एक सिहरन सी हुई और उसने अपनी नजरें वहां से हटाकर अपनी गाड़ी में सवार हो , वो वहां से चली गयी , कभी ना आने के लिए !


जगदलपुर शहर की सुबह यूं तो हमेशा चिड़ियों की चहचहाहट से शुरू होती थी । लेकिन श्रावण माह के शुरूआत में ही सुबह हल्की बारिश से होती थी और शाम मूसलाधार बारिश से होती । आज श्रावण  का दूसरा इतवार था । सुबह के आठ बज रहे थे और नन्ही श्रुति अभी तक आराम से सो रही थी । लेकिन कमरे के बाहर श्रुति की मम्मी सुनंदा की तेज आवाज आ रही थी ।‌ 

सुनंदा : ” मैं तंग आ गयी हूं इस किराए के मकान  से , रमेश तुम आखिरी बार सुन लो मुझे अपना घर चाहिए मतलब चाहिए ! “

सुनंदा की बातें सुनकर रमेश चिढ़ सा गया ।‌

रमेश : ” सुनंदा तुम्हें तो मालूम है ना , कि मैं कोशिश कर रहा हूं अपने बजट के हिसाब घर ढूंढने की , लेकिन तुम्हें मालूम है ना कि हमारी कीमत पर एक अच्छा घर मिलना बहुत मुश्किल है । “

सुनंदा : ” मुझे पता है रमेश , पर तुम समझते क्यों नहीं कि इस तरह किराए के घर में भटकना मुझे अच्छा नहीं लगता । अब तुम घर कैसे ढूंढोगे , क्या करोगे तुम जानो पर अब मैं एक कमरे के घर में नहीं रह सकती । “

सुनंदा ने कहा और मुंह फुलाए खड़ी रही । रमेश उसे इस तरह देखकर कहने लगा ।

रमेश : ” अब इसी तरह खड़ी रहोगी या मेरे लिए चाय भी बनाकर लाओगी । “

सुनंदा गुस्से से : ” अभी लाती हूं । “

कहकर सुनंदा चाय बनाने चली गयी । तभी रमेश का मोबाइल बजने लगा ।

रमेश फोन उठाते हुए : ” हेलो ! “

उधर से आवाज आई : ” हेलो रमेश जी , मैं प्रशांत ब्रोकर ! “

रमेश खुश होते हुए : ” मैं अभी आपको ही फोन करने वाला था प्रशांत जी पर आपने सामने से लगा लिया ‌। अब बताइए कोई घर मिला जो मेरी बजट में हो । “

प्रशांत : ” इसीलिए तो आपको इतनी सुबह फोन किया है । शहर के बाहर एक नई कालोनी बनी है । वही पर एक मकान कल ही खाली हुआ है । मकान मालिक इस शहर से बाहर जा रहे हैं इसीलिए वो ये घर जल्द से जल्द बेचना चाहते हैं । फिलहाल मकान अभी खाली है और आपको शायद आपके बजट के हिसाब से मिल जायेगा । एक बार आप और भाभी जी आकर घर देख लीजिए । उसके बाद आगे की बात करते हैं । “

रमेश : ” ठीक है आप पता भेज दीजिए और आप फ्री हो जाइए ,  दोपहर को मैं और सुनंदा घर देखने आ जायेंगे । “

प्रशांत : ” ठीक है मैं अभी आपको मकान का एड्रेस भेजता हूं । “

प्रशांत ने कहा और पता तुरंत रमेश को मैसेज कर दिया ‌। तभी प्रशांत के मोबाइल पर एक फोन आया ।

प्रशांत फोन उठाते हुए : ” हेलो जी , जैसा आपने कहा था , मकान के लिए किसी को बुलाया है ।‌ लेकिन एक छोटी सी दिक्कत है ! “

उधर से एक आवाज आई : ” कैसी दिक्कत ? “

प्रशांत : ” जो ये घर देखने आ रहा है , वो इस घर की कीमत कम देगा । अगर आप कहें तो मैं इस घर को अच्छे दामों पर बिकवा दूंगा बस आपको थोड़ा इंतजार करना होगा । “

आवाज : ” नहीं.. बिल्कुल नहीं ! मुझे इस घर से जितनी जल्दी हो सके मुक्त होना है । कीमत कुछ भी हो अगर वो कम कीमत दे तो भी उन्हें मकान बेच देना । मुझे पैसों का नुकसान मंजूर है पर इंसान का नहीं ! “

उसने कहा और फोन रख दिया ।

क्रमश: 

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