(शेर)- क्यों- कहाँ खोई हूँ इतनी मैं अब, यह सावन आने पर।
क्यों बढ़ती जा रही है मेरी बेचैनी, यह सावन आने पर।।
कौन आयेगा मुझसे मिलने को, इस सावन के आने से।बोल सखी, क्यों नींद उड़ी है मेरी, यह सावन आने पर।।
ओ री सखी, बोल सखी, यह सावन क्यों आता है।
नींद उड़ाकर रातों में क्यों, मुझको यह तड़पाता है।।
ओ री सखी, बोल सखी————————।।मैं क्यों दीवानी हो गई हूँ , यह सावन आने पर।
रहती हूँ ख्वाबों में खोई, याद किसकी आने पर।।
क्यों किसकी सूरत मुझको, यह सावन दिखाता है।
नींद उड़ाकर रातों में क्यों, मुझको यह तड़पाता है।।
ओ री सखी, बोल सखी———————-।।तितली बनकर उड़ती हूँ मैं, बागों में फूलों पर।
क्यों छेड़ती है सखी तू ऐसे, सावन में झूलों पर।।
लिखकर कौन खत मुझको, सावन में बुलाता है।
नींद उड़ाकर रातों में क्यों, मुझको यह तड़पाता है।।
ओ री सखी, बोल सखी———————-।।मोर- पपैया नाचे छम-छम, कोयल गीत सुनाती है।
मुझे भिगोकर बरखा रानी, मुझे मदहोश बनाती है।।
क्यों मेरे मनमीत को सँग में, सावन नहीं लाता है।
नींद उड़ाकर रातों में क्यों, मुझको यह तड़पाता है।।
ओ री सखी, बोल सखी———————-।।शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)