अतीत के पन्ने स्याह से,
खोये हुए अपनों के बिना निर्जीव से,,
यादों के अवलम्ब पर बनते चित्र निर्मूल ..
घर की पगडंडियों भी अब अपरिचित सी..
मालूम होता अब कोई नहीं रहता वहां !
न मैं,न मेरी आहटें,न खुशियां ,न मेरे अथूरे सपने!
बंद दरख्तों के रोशनदान खुले नहीं कब से..
ये अतीत की गलियां संकरी सी!!
जहां आकृतियां तो हैं, पर स्पंदन नहीं!
अनुभूति तो है पर छाया सी,
छूने जाऊं तो पकङ में नहीं आती!
@✍️”पाम”
और भविष्य?
सूर्य के समान जीवंत !
इंद्रधनुष के सभी रंग लिए
अनन्त आकाश के विस्तृत नीले पट
पर कुछ नवीन आकृतियों की प्रतिक्षा में
तटस्थ खङा है!!
मौन के सानिध्य में ,
मुखर होती आकृतियां…
भविष्य के रूपहले रथ पर …
अंधकार की कालिमा को छोङ,,
रक्तिम आभा से दग्ध..
जीवन को फिर से पुकार रही है।
जो स्वप्न जीने की चाह थी कभी..
वो दूर क्षितिज पर बिखरा सिन्दूरी रंग
उन सपनों को रंग देने भविष्य के रोशनदानों से
झांक रही है!!
डाॅ पल्लवीकुमारी”पाम”
अनिसाबाद, पटना,बिहार