पता नहीं हम क्यों जीते हैं।

ग़म का जहर हम सब पीते हैं।

1 अपने होकर बेगाने है।

साथ में हैं पर अंजाने है।

किसी शमां के परवाने है ।

ज़ख़्म जिगर फिर भी सीतें है0…….

2 रसना में उनकी रस ना है।

हम यश करते पर यश ना है।

पल पल हम मरते जीते हैं 0…….

3 अच्छाई का पतन हो रहा।

मेरा अब तन मन भी रो रहा

हार के हम फिर भी जीते हैं 0……

बलराम यादव देवरा छतरपुर

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