टीना अपने पापा के साथ मार्केट गयी थी। वहीं पर उसे पिंजड़े में कैद तोता दिखायी दिया। टीना ने पापा से कहकर तोता पिंजड़े के साथ ले लिया और घर ले आयी। घर लाकर टीना तोते के साथ ही खेलने-कूदने लगी। तोता भी टीना के साथ खूब हिल-मिल गया। टीना तोता को मन-पसंद चीजें खिलाती थी और खूब ढ़ेरों बातें भी करती।
जब टीना स्कूल चली जाती तो तोता टीना का इन्तजार करता। जैसे ही टीना पिंजड़े के पास आती तो तोता बहुत खुश होता।
काफी दिन बीत जाने के बाद टीना ने सोचा- तोता घुल-मिल गया है, दूर नहीं जायेगा। अब उसे पिंजड़े से बाहर निकाल दूँ और उससे बातें करूँ। उसे मन-पसंद खाना खिलाऊँ। यही सोचकर टीना ने तोता को पिंजड़े से बाहर निकाल दिया। कुछ देर में टीना खेलने में व्यस्त हो गयी और तोता मौका देखकर उड़ गया। टीना को बहुत दु:ख हुआ। उसने खाना-पीना छोड़ दिया। वह तोता के वियोग मे रोने लगी। टीना के अभिभावक ने समझाया कि-,”तोता अपने घर चला गया है। जैसे ये तुम्हारा घर.. हम तुम्हारे अम्मी-पापा हैं, अगर तुम हमसे जुदा हो जाओ तो आने के लिये प्रयास करोगी। ठीक इसी तरह हो सकता है तोता भी अपने घर गया हो। तुम्हें खुश होना चाहिए कि तोता अपने घर गया है वह एक दिन जरुर आयेगा।”
टीना को अभिभावक की बात समझ में आ गयी। टीना ने आँसू पोंछा और मुँह धोया, फिर खाना खाया। वह हर रोज़ तोता का इन्तजार करने लगी।
एक दिन टीना खुशी से नाचने लगी और तोता को देखकर उसे गोद में लेकर अपने अभिभावक के पास जाकर कहने लगी-,”ये देखो, अम्मी, पापा! तोता आ गया।”
तोता भी सब से मिलकर खुश हुआ। उसने खूब मजे से टीना के द्वारा दिया हुआ भोजन खाया।
फिर टीना के साथ खेलने लगा।
कुछ देर बाद टीना की अम्मी ने कहा-,”टीना बेटा! अब तोता को पिंजड़े में बन्द कर दो।”
टीना ने कहा-,”नहीं अम्मी! अब हम तोता को पिंजड़े में बन्द नहीं करेंगे, वरना वह अपने घर नहीं जा पायेगा। अब हम समझ गये हैं कि तोता को अपने परिवार के पास रहना ज्यादा जरुरी है। जैसे हम आप दोनों के बिना नहीं रह सकते वैसे तोता भी कैसे अपने परिवार से दूर रह पायेगा।”
तोता का मन होगा, तब तक यहाँ रहे फिर उसे इजाजत है वह अपने घर जा सकता है।”
कुछ देर बाद तोता फिर आसमान में उड़ गया। इस बार टीना ने खुशी-खुशी तोता को अलविदा कहा। फिर उसके बाद टीना ने अपना बस्ता उठाया और स्कूल से मिला हुआ होम वर्क किया।

शिक्षा
पशु-पक्षियों की भी अपनी दुनिया होती है। हमें उन्हें बंधक बनाने का कोई हक नहीं है।

शमा परवीन
बहराइच (उ० प्र०)

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