शुरु शुरू मे तो अंजान लगता है ये रिश्ता ,
धीरे धीरे अपनापन लाता है ये रिश्ता,
सुख दुःख के साथी होते है,
साथ मे गिरते और संभलते है,
सात फेरों का खेल है सारा,
उससे ही जुड़ जाता है संसार सारा,
नोक झोक से शुरू होते दिन इनके,
रुठने, मनाने पे खत्म होती कहानी इनकी,
कमाकर लाता पति, बनाकर खिलाती पत्नी,
साथ मे हो जब दो पहिये कटते आसानी से रस्ते,
एक भरोसा एक समर्पण,
कर देते एक दुसरे पर सब अर्पण l
बडा़ ही प्यारा रिश्ता है,
जो दो अजनबीयो को एक बनाता हैll
प्रिती उपाध्याय@