साहित्य है क्या ? जो समाज का हित करे, वही तो साहित्य है। हम सब जानते हैं कि हमारे अंदर उमड़ते-घुमड़ते विचारों की जब तक किसी भी रूप में अभिव्यक्ति नहीं हो जाती तब तक हम तनाव और अवसाद में रहते हैं। क्रोधित भी होते हैं तो इन्ही अंदर के विचारों, आकांक्षाओं और लालसाओं को विविध तरीके से प्रकट कर तनाव मुक्त हो जाते हैं। ऐसा ही कुछ लेखन के साथ भी है। शांत और एकाग्र मन से किसी विषय पर चिंतन करें और कागज पर उसे उतार दें, हो गया लेखन। फिर यह परिष्कृत तो धीरे-धीरे बढ़ते अध्ययन से हो ही जाता है। शुरुआत तो करें। बस इतना ध्यान रखें कि आपके सकारात्मक विचार पाठकों में ऊर्जा और प्रेरणा भरेंगे इसलिए निराशा से बचें। निराशा नकारात्मकता पैदा करती है जो हमेशा सबके लिए घातक होती है।
     अंत में इसी अपेक्षा के साथ सभी साहित्यिक मित्रों से कहना चाहूँगी कि वे लिखने से पहले पढ़ें जरूर। और ऐसे पढ़ें, जैसे मनोरंजन के लिए पढ़ रहे हों। धीरे-धीरे जब हम उसमें रमने लगेंगे, तो ऐसा लगेगा जैसे पढ़ने से सस्ता कोई मनोरंजन नहीं और लिखने से अच्छा कोई आंनद नहीं। एक बात और, किताबों को या डिजिटल माध्यमों को मित्र, गुरु और सलाहकार बनाइए। कहा भी गया है – कि किताबें मित्रों में सबसे अधिक शांत और स्थिर होती हैं। सलाहकारों में सबसे सुलभ और बुद्धिमान होती हैं। यही नहीं, किताबें सबसे ज्यादा धैर्यवान शिक्षक भी होती हैं। इसीलिए कहा – इन्हें मित्र, गुरु और सलाहकार बनाइए। ये आपको अवसाद और तनाव से भी मुक्त रखेंगी ।  
    साहित्य के क्षेत्र में अनेक नाम ऐसे हैं जो अपने लेखन से समाज को दिशा देने के लिए कटिबद्ध हैं। इनका लेखन भी नई पौध को आकर्षित कर रहा है। यह भी सही है कि अब पत्र-पत्रिकाओं का स्वरूप भी डिजिटल होता जा रहा है जिसे उपलब्धि के रूप में ही देखा जाना चाहिए।
साहित्य में जीवन-दर्शन निहित होता है और यह सृजन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें समाज प्रतिबिंबित होता है और उसकी दिशा व दशा पर साहित्य का गहरा प्रभाव होता है। साहित्य की समाज में छोटी, मगर महत्वपूर्ण भूमिका है। इसे पढ़े-लिखे अथवा प्रबुद्ध लोगों की दुनिया भी कह सकते हैं।

  लेखिका – सुषमा श्रीवास्तव, मौलिक विचार, रुद्रपुर, उत्तराखंड।

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