“माँ बस एक बार आ जाती”
माँ की सेवा से बढ़कर
और कोई उत्कृष्ट आनंद नहीं ,
है इस जग में सर्वोपरि यही ।
माँ तुम चली गयी कहाँ,
समझ नहीं आता आने वाले
चले जाते हैं कहाँ,
हर पल हर छण
तुम नजर आती मुझे यहाँ वहाँ,
कहने को तो सभी हैं आस पास
पर तुम्हारी कमी माँ कभी पूरी
होती नहीं इस जहाँ,
माँ बस एक बार आ जाती
रोशनी सी बिखर जाती
मन आँगन में,
चाॅद धरती पर उतर आता
और सूरज अठखेलियाँ करता,
खिल जाते सारे वन उपवन,
पावन पवित्र पुलकित हो जाता
घर आँगन,
फिर से ममता रूपी कलश
भर जाते,
प्यार ही प्यार छलकाते,
लौट आता हमारा बचपन,
माँ तुमसे बढ़कर कोई अपना नहीं
इस दुनिया में,
तुम अपनत्व से भरा गागर थी
जिसमें समाया था संसार हमारा,
करती थी तुम इंतजार हमारा,
गर आने में हो जाती
थोड़ी सी भी देरी,
आने पर सबसे पहले
खाने को कहती,
सारी चिन्ता परेशानी
हर लेती मेरी ,
माँ तेरा वो हर वक्त
मेरी परवाह करना,
अपने आंचल की छाया देना,
माँ तेरा वो सामीप्य, सानिध्य
बहुत याद आता है मुझे,
माँ कहने को तो
दुनिया का मेला है,
पर तेरे बिना माँ मैं
भीड़ में अकेला हुॅ ।।
,,,,,,,,,,,,डॉली मिश्रा ” पल्लवी “✍️