किसी भी देश का नौजवान सेना में भर्ती होते ही गर्व की अनुभूति करने लगता है।उसके साथ साथ उसके माता-पिता तथा समस्त पारिवारिक सदस्य स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं। इतना ही नहीं उससे संबंधित हर व्यक्ति गाँव/ जिले के लोग भी अपने परिचय में उसको संयोजित करने में गर्व महसूस करते हैं।
भारतीय सेना का एक सैनिक होना तो सारे देश का अभिमान होता है।वह लंबें, चौड़े शरीर,मजबूत कद काठी का मालिक होता है।उसकी वर्दी और कंधों पर लगे सितारे उसे देश की जिम्मेदारी का सदैव आभास कराते रहते हैं। उसका जीवन बड़े ही संघर्षों से गुजरता है, फिर भी युवाओं में भारतीय सेना में जाने के लिए जो लगाव है वो अपने आप में गौरव की बात है।
एक सैनिक बचपन से ही कठिन परिश्रम कर अपने आप को भारतीय सेना के लिए तैयार करता है, वैसे तो लाखों युवा भारतीय सेना में सैनिक बनने के लिए लालायित रहते हैं लेकिन कुछ जरुरी परीक्षाओं और शारीरिक मापदंडों के बाद बहुत कम लोग ही सैनिक बन पाते हैं।
सैनिक बनने के बाद उसके जीवन में रिश्तों और भावनाओं से ज्यादा देश महत्वपूर्ण हो जाता है। जहाँ वह देश के लिए हमेशा अपने प्राण तक न्योछावर करने के लिए तैयार रहता है।
उसके सीने में भी एक दिल है,उसे भी फिक्र रहती है घर की, उसे भी याद आता है माँ के हाथ का खाना, उसे भी किसी स्त्री से प्रेम होना उतना ही स्वाभाविक है जितना किसी आम आदमी को। लेकिन मैं इन सब को त्याग कर वह देश को सर्वोपरि रखता है। तभी मैं सैनिक कहलाता हूँ।
उसकी वेष-भूषा,रहन-सहन अपने आप में बहुत आकर्षित होती है, जिसके लिए जाने कितने युवा आज भी दिन रात मेहनत करके भी तरसते रह जाते हैं। सैनिक होना अपने आप में एक सम्मान का पात्र होना है। वह एक किसान की तरह बिना दिन, दोपहरी, या रात देखे अपने काम के लिए तैयार रहता सदा सर्वदा, और बहुत ही ईमानदारी से तत्पर रहते हुए अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद रहता है,उस वक्त उसे कोई भी मौसम की विकटता या परिस्थितियों की प्रतिकूलता अवरोधित नहीं कर सकती है।
बर्फीले इलाके में उस पर बर्फ भी पड़ती रहती है। फिर भी वह अपने कदम नही हिलाता और डटा रहता है अपने कर्त्तव्य-पथ पर।
न्यून से न्यूनतम एवं अधिकतम तापमान उसके लिए मायने नहीं रखते। चाहे वर्षा आए या तूफान एक सैनिक के कदम हिलाना उनके बस की बात नहीं है।
कुछ दिनों की छुट्टी लेकर जब वह घर जाता है, तब भी वह अपने देश की सुरक्षा और अपने देश के नागरिकों के लिए फिक्रमंद रहता है। वह किसी भी धर्म- जाति के लिए नही लड़ता, पूरे देश के लिए अपनी जान न्यौछावर करता है, एक सैनिक का धर्म सिर्फ देश की आन-बान और शान है।
वह युद्धों में लड़कर जीतता है और कभी तो जीतते-जीतते अपने प्राणों की बाजी भी लगा देता है किंतु कभी भी अपने देश या अपने तिरंगे पर आंच नही आने देता। उसे पुरस्कार स्वरूप मैडल मिलते हैं जो उसकी वीरता के परिचायक होते हैं। इन मेडलों को पाकर वह बहुत खुश होता है, क्योंकि यही मैडेल उसके जीवन की असली कमाई होते हैं।
वह कभी भी मरता नही है, वह सदैव लोगों के दिलों में ,देश के दिल में जिंदा रहने का हक़दार है, वह तो सिर्फ शहीद होता है, उसकी शहादत पर तो पूरा देश आँसू बहाता है और अपने अंतिम प्रणाम के साथ भावभीनी श्रद्धांजलि देता है।
वह तो मानों कुछ पलों के लिए अपनी शहादत को भी भूलकर लोगों के प्रेम को स्वीकार करता हुआ चल देता है तिरंगे से बने कफ़न में लिपटकर। किसी भी सैनिक के लिए तिरंगे में लिपटकर जाना,भारत माँ की गोद में समा जाने जैसा ही होता है।
निश्चित रूप से एक सैनिक का जीवन, आम जीवन से बहुत अलग होता है, सैनिक हमेशा ही अपने अनुशासन में रहता है चाहे वह ड्यूटी पर हो या अवकाश पर। लोगों को सैनिकों को रिस्पेक्ट देनी चाहिए क्योंकि वो जो भी करते हैं हमारी सुरक्षा के लिए ही करते हैं, उनके लिए तो समस्त उत्सव, पर्व,खुशी, गम, अपना-पराया और सुख -दुःख की परिभाषा स्वदेश भक्ति व देशप्रेम के साथ-साथ कर्त्तव्य ही है।तभी तो कहते हैं कि सैनिक बन सैनिक धर्म निभाना सबके वश का नहीं है या आसान नहीं है।
धन्यवाद!
लेखिका-
सुषमा श्रीवास्तव