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ना ही तन चाहिए ना भवन चाहिए,
मातृभूमि की रक्षा हो, ऐसा फन चाहिए, 
मां भारती की रक्षा की खातिर,
सीना ताने खड़े रहे हाजिर ,
अब कर लो चाहे जतन या हवन,
पहले से बांधे हैं सर पर कफन,
कर कष्टों से अपनी वो दोस्ती,
हंसते-हंसते मिटा दी अपनी हस्ती,
हम फूलों की सेज पर सोते रहे,
वो कांटे गले से लगाते रहे,
मां भवानी के सैनिक की देहरी ,
तन में है  केसरी मन में है केसरी,
सात रंगों से बढ़कर छटा केसरी,
देखो अंबर की आभा हुई केसरी,
हर सैनिक के दिल में है केसरी,
तन पर लिपटा तिरंगा हुआ केसरी
सो रहे देखो चेहरे पर मुस्कां लिए,
मातृभूमि की मुक्ति का अरमां
लिए ,
मां भवानी के पुतो की देहरी ,
रग रग में तिरंगे की है केसरी,
तन में है केसरी मन में है केसरी,
हर सैनिक के मन में छटा केसरी,
केसरी केसरी केसरी केसरी…..
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