कुछ मेरी भी आशाऐं है हैं, मेरी भी कुछ उम्मीदें हैं..।
कितने सारे हमउम्र मेरे, गुरु कुल में पढने जाते हैं.
सूनी नजरों से देखा फिर अपने अरमान जलाते हैं.
इक क्षुधा मिटाने की खातीर मिलती हर रोज दलीलें हैं.
कुछ मेरी भी आशाएं हैं, मेरी भी कुछ उम्मीदें हैं।
जी तोड़ परिश्रम करते पर,मालिक के टूकड़ों पे पलते
किसने देखा है हश्र मेरा, मेरे इन राहों पे चल के.।
क्यूँ छिन लिया मेरा बचपन, क्यूँ हमसबसे नीचे हैं
मेरे भी कुछ आशाएं हैं मे री भी कुछ उम्मीदें हैं ।
मेरे हाथों नाकलम मिली ना विद्या कामंदिरदेखा
कैसे बदलू ये धूंधली सी अपने हाथों की यह रेखा
आरति होती इस दूनियासे जिसमें हम जलना सीखें हैं
मेरी भी कुछ आशाएं हैं कुछ मेरी भी उम्मीदें हैं
प्रारब्ध हमारा बोल उठा तुम हो मां के राजा बेटा
मां के इस पावन आंचल मे किसने है कब कीचड़ देखा.
कांटो से घिर के रहते हैं हम भी तो फूल सरीखे हैं
कुछ मेरी भी आशाएं हैं मेरी भी कुछ उम्मीदें हैं.।
,,उर्मिला तिवारी
देवरिया