बहुत कर चुके अनुप्रयोग
 अब बंद इन्हें करना होगा
 बस्ते पर बढ़ता प्रयोग
खत्म इसे करना होगा
 शिक्षा पर ही सब आजमाते 
असल हकीकत समझ ना पाते 
नवाचार का नाम लगाकर
 बस्तों का ही बोझ बढ़ाते 
अच्छे स्कूल अच्छा कॉलेज
 अच्छे नंबर अच्छा नॉलेज 
भाग रहे हैं इनके पीछे
 मेरी मर्जी समझ ना पाते
 कितना करूं कैसे करूं
 कैसे जियूं कैसे मरूं
 प्रतियोगिताओं के इस युग में 
पूरे सौ भी कम पड़ जाते 
हर कोई आइंस्टीन ना बनता
 ना होता है विवेकानंद 
अपनी मर्जी की पढ़ाई का 
होता है अपना आनंद 
कंप्यूटर के युग में क्या
 मेरी ही बलि चढ़ाओगे
 बटन दबाते जो चल देती
 क्या ऐसी मशीन बनाओगे 
भाग रहा हूं हाफ रहा हूं
 जैसे जीवन काट रहा हूं
 मैं भी एक इंसान ही तो हूं 
अपने सुख दुख बांट रहा हूं।
       प्रीति मनीष दुबे
         मण्डला(म.प्र)
Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *