घर आते ही सोहन ने फिर से सन्यास की राह पर चलने की इच्छा व्यक्त कर दी। पिछली बार वह चुपचाप निकल गया था पर अब वह चुपचाप नहीं भागेगा। अपने माता पिता से आज्ञा लेकर सन्यास की राह पकड़ेगा। अब उसे लग रहा था कि उसका संसार में कोई भी कर्तव्य शेष नहीं है। इतने समय में लगता है कि अब उसके माता पिता भी उसके आश्रित नहीं है। वैसे भी संसार में कोई भी किसी के आश्रित नहीं होता है। मोह में बंधा मनुष्य हमेशा गलत ही देखता है। कभी माता पिता के नाम पर, कभी पत्नी के नाम पर तथा कभी बच्चों के नाम पर खुद को अध्यात्म के मार्ग पर चलने से रोकता रहता है। सत्यनारायण भगवान की कथा की कहानी सभी दुहराते रहते हैं। एक कर्तव्य पूर्ण होते ही एक दूसरा कर्तव्य सामने खड़ा दिखाई देता है। मनुष्य का भ्रम कि वह यही समझता रहता है कि उसके नजदीकी उसकी सहायता के बिना एक कदम भी नहीं चल पायेंगे। अनेकों बार तो अंतिम अवस्था में पहुंचा व्यक्ति भी यही भ्रम पाले रखता है कि उसके बिना उसके परिजन मिट जायेगें। भले ही अब वह शरीर से कुछ नहीं कर पा रहा है, पर जो भी संचालन हो रहा है, वह उसके जीवन भर के अनुभवों का परिणाम है। हालांकि सच्चाई तो यही है कि उस व्यक्ति के संसार से विदा हो जाने के बाद भी संसार पहली ही तरह चलता रहता है। संसार को चलाने के अहम में मनुष्य अपना आध्यात्मिक अहित करता रहता है।
   सच्चाई तो यही है कि इस संसार का निर्माण करने बाले, पालन करने बाले तथा संहार करने बाले भी एकमात्र ईश्वर ही हैं। जिन्हें सभी अपनी अपनी श्रद्धा से विभिन्न नामों से पुकारते हैं।
   लगता है कि यह बहुत अच्छा रहा कि सौदामिनी और सरस्वती दोनों ने ही मुझसे विवाह करने से मना कर दिया। वास्तव में शायद संसार में रम जाना मेरे जीवन का उद्देश्य ही नहीं है। ईश्वर प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की राह तय रखते हैं। वही प्रत्येक व्यक्ति को उसके लिये निर्धारित पथ पर आगे बढाते हैं।
   सोहन को लग रहा था कि उसके द्वारा सन्यास की आज्ञा मांगते ही उसके पिता विह्वल हो जायेंगें। उसे निर्णय बदलने के लिये कहने लगेंगे। उसकी ममतामयी माॅ अपने वात्सल्य के जाल में उसे बांधने का प्रयास करेगी। अपने आंसुओं से उसे कमजोर बनाने का प्रयास करेगी। फिर वह अपने सिंचित ज्ञान की वर्षा कर उन्हें संसार की असारता समझायेगा। उन्हे बतायेगा कि संसार में तो कोई भी नहीं रुकता है। कोशिश कर संसार में रमने बालों को भी संसार एक दिन छोड़ ही देता है। फिर उस अवस्था तक पहुंचने से पूर्व ही संसार को त्याग सन्यास की राह पर चल देने से उत्तम भला क्या है। 
  पर सोहन के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जबकि न तो उसके पिता घबराये और न उसकी माता ने आंसुओं की बरसात की। ठीक है कि बेटा सन्यास के पथ पर बढना चाहता है। ईश्वर जिन्हें सही राह दिखाते हैं, उन्हें भला कौन रोक पाया है। सन्यास की राह पर जाने बाले के सामने दुखी नहीं होना चाहिये। अन्यथा सन्यास के बाद भी सन्यासी का मन संसार में विचलित होता रहता है। सोहन को खुशी खुशी विदा करने की तैयारी थी। मात्र एक छोटी सी समस्या शेष थी। कभी उसने भूल से सौदामिनी को माता कहा था। इस तरह वह सौदामिनी से आशीर्वाद लिये बिना नहीं जा सकता है। इसमें सोहन को भी कोई आपत्ति नजर नहीं आ रही थी। वैसे भी सन्यासी को संसार की सारी स्त्रियों को माॅ ही मानना चाहिये। शाम को जब सौदामिनी अपनी नौकरी से वापस आ जायेगी तब वह उससे भी आज्ञा ले लेगा। लगता नहीं है कि सौदामिनी भी उसे रोकने का कुछ प्रयास करेगी। लगता है कि ईश्वर उसके पूरी तरह अनूकूल हैं। 
  पिछले कुछ दिनों में सोहन को बार बार अप्रत्याशित अनुभव हो रहा था। जब वह समझ रहा था कि सौदामिनी बिना किसी परेशानी के उसकी जीवन संगिनी बन जायेगी तब सौदामिनी ने माता और पुत्र के संबंधों की मर्यादा रख दी। सरस्वती के विषय में भी उसका निर्णय गलत रहा। सरस्वती जो खुद दो बच्चों की माता है, अपने बच्चों के चारित्रिक उत्थान के लिये उसके साथ जीवन बिताने में असमर्थ है। इधर उसने अपने माता-पिता के विषय में जैसा विचार किया था, उसे बिलकुल अलग अनुभव हुआ। 
   वास्तव में सोहन को अभी और भी अलग अनुभव होने शेष हैं। सोहन के विभिन्न अनुमानों में केवल एक ही अनुमान सत्य है कि ईश्वर उसके अनुकूल हैं। अनेकों बार जब ईश्वर अनुकूल होते हैं, तब साधक को उसकी क्षमता का सही सही परिचय कराते हैं। उसे संसार में रहकर भी संसार से वैराग्य का तरीका बताते हैं। सन्यास के लिये संसार का त्याग कब आवश्यक है। जल में भी उत्पन्न और जल में ही पूरा जीवन व्यतीत करने बाला कमल का पुष्प कभी भी जल में डूबता नहीं है। हमेशा जल से ऊपर ही रहता है। जल का स्तर बढने पर कमल पुष्प भी अपना स्तर और उठाता है। फिर वह कभी भी जल में डूबता नहीं है। जल से ऊपर रहकर अपनी सुंदरता से देवों के मन को भी आकर्षित करता है। तभी तो कमल देवों और देवियों को प्रिय पुष्प है। जल में रहकर जल से विरक्ति का तरीका जानने बाला कमल पुष्प एक सच्चे सन्यासी का द्योतक है। इसीलिये कमल देवों को अति प्रिय है। 
क्रमशः अगले भाग में
दिवा शंकर सारस्वत ‘प्रशांत’
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