आज रश्मिरथी समूह पर लेखन-विषय “उपकार” दिया है।जिसके विषय में मेरा पक्का विश्वास है कि उपकार (परोपकार) की भावना इंसान ही नहीं अपितु हर जीव के अंदर निहित होती है।इस विचार को मैं सभी को अपनी एक कहानी के माध्यम से समझा रही हूँ। देखें –:
हरिहर एक गरीब,परिवार के नाम पर अकेला आदमी था, साथ ही वह उम्रदराज भी हो चला था। वह अपना भरण-पोषण बाँस के पंखे को बना और बेचकर करता था। गर्मी के दिनों में पंखा घूम-घूम कर बेचता था।
दोपहरी में एक नदी किनारे पीपल के पेड़ के नीचे आराम करता था। पंखो को बेचे हुए पैसों से कभी मुरी-कचरी, कभी बिस्किट,पाव जो कुछ भी मिल जाता खा कर नदी- पोखर से पानी पी कर गमछा बिछाकर लेट जाया करता था।
एक दिन दोपहर के समय हरिहर खाने की तैयारी कर रहा था कि वहाँ एक बूढ़ा बंदर आ गया और उसे टकटकी लगा कर देखने लगा। हरिहर को दया आ गई उसने दो कचरी और बिस्किट उसको दे दिया। उस बंदर ने उठाया और बड़े चाव से खाने लगा।
उसके बाद तो उसका रोज का जैसे नियम बन गया ।नित्य दोपहर खाने के समय बंदर वहाँ आ जाता तो हरिहर भी कुछ न कुछ उसे खाने को दे देता, इस प्रकार दोनों में दोस्ती हो गयी।
एक दिन ऐसा हुआ कि हरिहर का एक भी पंखा नहीं बिका और उसके पास खाने को भी कुख नहीं था। तब वो भूखा ही पानी पीकर पेड़ के नीचे सो गया।
इतने में बंदर रोज की तरह आया, तो उसने देखा हरिहर उदास हो कर सो रहा है।
बंदर ने हरिहर के सिरहाने के पास गठरी में से दो पंखे निकाले और लेकर भाग गया, कुछ देर बाद वह एक पपीता लेकर आया और आनंद को आवाज़ करके उठा दिया फिर उसके सामने पपीता रख दिया। हरिहर ने देखा – जैसे बंदर आँखों के इशारो से कह रहा हो कि मुझे भी दो और तुम भी इस पपीते को खाओ। क्या हुआ, अरे कल पंखा जरूर बिकेगा ,भरोसा रखो।
हरिहर ने चाकू से पपीता काटकर बंदर को भी दिया और खुद भी खाया। वह खा पीकर थोड़ी देर बाद पंखा बेचने बस्ती की ओर चला पड़ा, और जोर -जोर से आवाज़ लगाने लगा।पंखा ले लो, पंखा ले लो।
इतने में एक छोटे घर से एक बूढ़ा व्यक्ति निकला और पंखे वाले को आवाज़ देकर बोला – अंदर आ जाओ और बैठो। फिर उसने दो पंखे दिखाकर पूछा, ये पंखे तुम्हारे ही हैं न? एक बंदर लेकर आया और पपीता ले गया, ये दोनों पंखे छोड़ गया।
तब हरिहर को सब समझ में आ गया और बोला- साहब बंदर पंखे के बदले पपीता तो ले ही गया है। आप इसे रख लीजिये मुझे पंखे का दाम मिल गया है। हरिहर के इस उत्तर से चकित उस बूढ़े पुरुष ने विस्तार से उस घटना को बताने को कहा। तब आनंद ने सारे घटना को कह सुनाया। जिसे सुनकर उस व्यक्ति ने कहा – यदि एक पशु में इतना विवेक है, तो मैं तो इंसान हूँ। ये दोनों पंखे की
कीमत लेते जाओ, उन्होंने पाँच रुपये देकर उसे विदा किया।
हरिहर ने उन्हें धन्यवाद दिया और फिर पंखा ले लो, पंखा ले लो आवाज लगाते हुए आनंद पूर्वक पंखा बेचने चला गया।
लेखिका
सुषमा श्रीवास्तव