मन मिले तो हाथ मिले, मन मिले तो साथ मिले।
हाथों के मिलने से क्या होगा, मन से मन के कुमुद खिले।।
मन मिले तो हाथ मिले————।।
यह दुनिया वैसी नहीं, जैसा कि हम और तुम सोचते हैं।
वो पर्वत सुंदर नहीं इतने, यहाँ से हम जिनको देखते हैं।।
ये जल के अथाह महासागर, किस मतलब के ।              नीर अगर अमृत ना मिले, नीर अगर अमृत ना मिले।।
मन मिले तो हाथ मिले————-।।
ये दरख़्त हैं ऊंचे इतने, इनकी छांव नहीं शीतल इतनी।
वो रोशन हैं तारें इतने, उनसे रोशन नहीं धरती इतनी।।
ये चलती पवनें इठलाती,तब बहारें होती नहीं।
सुरभि प्राणों की गर ना मिले,सुरभि प्राणों की गर ना मिले।।
मन मिले तो हाथ मिले————-।।
इतने टुकड़े हुए क्यों जमीं के, क्यों होते हैं बलवे धर्म के।
बेरौनक क्यों हुई यह जन्नत, कब बादल मिटेंगे भ्रम के।।
लौट नहीं सकती वहाँ खुशियां, होगी नहीं वहाँ शान्ति।
दीप प्रेम का गर ना जले, दीप प्रेम का गर ना जले ।।
मन मिले तो हाथ मिले————-।।
हँसकै करते थे बातें कल तक, हंसते हुए कल मिलते थे।
ऐसा लगता था नहीं कल भूलेंगे, लोग वफ़ा जो करते थे।।
क्यों नहीं मिलते अब वो वैसे, प्यार क्या कल का दिखावा था।
मगरूर क्यों वह यूँ निकले , मगरूर क्यों वह यूँ निकले ।।
मन मिले तो हाथ मिले————।।
रचनाकार एवं लेखक- 
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
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