जिंदगी मानो शतरंज की बाजी है
हम सब इसके मोहरे हैं
हमें फूंक फूंक कर समय की चाल के
हिसाब से चलना पड़ता है
जिंदगी ने जो बिसात बिछाई है
इसमें हम सब कठपुतलियां है
हमे समय की चाल के अनुसार ही
अपनी अपनी चाल चलना पड़ता हैं
कब शह मिलेगी कब मात कहना मुश्किल है
अचानक बीच में कौन बोल दे चेक
और हम स्तब्ध खड़े रह जाते हैं
सही चलती जिंदगी की बाजी कब पलट जाये
कौन कह सकता है
ये समय की चाल कभी हमें जिता देती है
कभी हम मात खा जाते हैं
ये दौर यूं ही चलता रहता है
और एक दिन
एक झटके में सब खत्म हो जाता है
और ये बाजी खत्म
ये समय की चाल अच्छे अच्छे को
जीने का शऊर सिख देती है
बस अगर हमने जिंदगी में कुछ
अच्छे कर्म किये हैं तो वही रह जाता है
बाकी सब शून्य है।
(अनिता कुशवाहा)
मौलिक एवं स्वरचित