मुश्किल से मिली इस ज़िन्दगी मे
और भी मुश्किल होता है गरीबी
लाचारी और बेबसी की गुलाम जैसे
काटते है दिन रात कोई सज़ा जैसे
एम एक सिक्के के लिए
हाथ फैलाना लोगो के सामने
कितना तकलीफ होता होगा
ज़ब कोई धुतत्कारता है
ज़िन्दगी जिना ऊन बच्चों के लिए
ना सर पे साया बड़ो के
न कोई अपना जो इनके सहारा बने
कैसे गुज़र होंगी ज़िन्दगी इनकी
जो एक वक़्त के रोटी भी मिले मुश्किल से
गर वो भी नसीब हुआ जिस रोज़
पीकर कुछ घुट गम की
सजाते है चैन से ज़मीं की आँचल मे
ठिहुरते रहते सर्दीयों मे
भीगते बीतते है मौसम बारिश मे
कोई फर्क न पढ़ता हो जीवन मे जैसे
तपती धुप मे जलते है रेत जैसे
खुदा के दिया हुआ ज़िन्दगी तो होती है
पर हर दिन भीख मांगना है मजबूरी इनके
कोई समझ सकता है लाचारी इनकी
जिनके बचपन ही इतनी बेबस है
गर होते इनके भी परिवार कोई
तो शायद ज़िन्दगी कुछ अलग होती
रहते तो मिट्टी के घर मे
पर भीख मांगने की लाचारी तो न होती
काश बदल जाता अब भी जीवन उनका
जिन बच्चों की भविष्य कूड़ेदानो मे बीतती है
,,,,,,,,,स्वरचित,,,,,,,,
प्रितम वर्मा