नन्नू जल्दी अंदर आ अभी के अभी, नहीं आया ना तू तो मैं बाहर आकर खूब मारूंगी…… सुना नहीं तूने, मां की आवाज सुनकर नन्नू को कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ा बस एक बार अंदर की ओर झांक कर वापस अपनी नावों को बहते हुए पानी में चलाने लगा कुछ ही देर में सविता बाहर आ ही गई | हाय राम! (खींच के एक थप्पड़ जड़ दिया) फिर क्या नन्नू लगा रोने सविता बड़बडाये जा रही है अपनी ही धुन में अब क्या करूंगी मैं कहां से लाऊंगी तेरे लिए कॉपी और यह किताब इसकी भी नाव बना डाली तूने कितनी मुश्किल से इस बार तेरे शराबी बाप से कुछ पैसे बचाये थे तेरे जूतों के लिए रोज रोज स्कूल में यही कह कर आती हूं कि अगली बार जूते पहनाकर भेजूंगी तुझे,बोलता क्यों नहीं क्यों बनाई इतनी नावे पूरी किताब की (खींच कर अंदर ले आती है) और अब बीमार मत पडना कहां से लाऊंगी दवा डांटते हुए सविता नन्नू के कपड़े बदलती है, बालों को रगड़ कर पौछती है | सात साल का नन्नू अपनी मां के साथ एक कमरे के मकान में रहता है उसी में पूरी दुनिया है उनकी बाप का मन करे तो घर आ जाता है वरना पड़ा रहता है कहीं पीकर नन्नू को बारिश बहुत पसंद है खासकर पानी में नाव चलाना ऐसी तो होती है बचपन की बारिश जिसमें उम्मीदों की कश्तियां बहायी जाती है | सूखे कपड़े पहन कर नन्नू दरवाजे की तरफ मुंह करके बैठा अभी भी अपनी कश्तियों को देखने की नाकाम कोशिश कर रहा था इतने में छत ने टपकना शुरू कर दिया नन्नू के ऊपर कुछ बूंदे गिरी की नन्नू झट से खड़ा हुआ और अपनी शर्ट के बटन खोल कर उसे उतारने लगा, फिर से जा रहा है भीगने, थप्पड़ भूल गया अभी का, सविता बोल उठी | नन्नू धीरे से बोला यह भी गीली हो गई तो छत की ओर इशारा किया सविता छत से टपकती बूंदों को देख वहां रखा सारा सामान कोनों में घुसाने लगी और एक तरफ आकर दूसरे कोने में बैठ गई नन्नू अभी भी धीरे-धीरे दरवाजे की तरफ अपने पैर सरका रहा है एक आंख दरवाजे की तरफ तो दूसरी सविता की | सविता ने आखिर उसे देख ही लिया तेरे समझ में नहीं आता एक बार, क्यों जा रहा है बाहर, वो… वो मेरी नाव नन्नू डरते हुए बोला और फिर चुप हो गया सविता उससे और गुस्से से बोली डूब गई तेरी नाव और साथ में मेरी भी इस बार नन्नू भी चीख कर बोला क्यों डूबती है वह पिंकी चिंटू और बंटी की तो कभी नहीं डूबती तुम गंदे कागज वाली कॉपियां लाती हो इसीलिए तो किताब की बनाई वह नहीं डूबेगी कहकर वह जल्दी से दरवाजे पर जाता है इस बार सविता की आंखों से बारिश होती है और वह धीमे कदमों से दरवाजे पर नन्नू के पास जाती है नन्नू मुंह लटकाए रोए जा रहा है सविता ने जैसे ही उसके सिर पर हाथ रखा उसने वह हाथ भी गुस्से और नफरत से हटा दिया तुम किताबें भी गंदी और पुरानी लाकर देती हो उस चिंटू की फिर अगली बारिश में उसके कागज नए और मेरे पुराने होंगे क्यों लाती हो तुम उसकी पुरानी किताबें मेरे लिए कहकर नन्नू अंदर आ जाता है और जोर जोर से रोने लगता है कुछ देर सविता दरवाजे पर खड़ी होकर अमीरों और गरीबों की बारिश का अंतर साफ-साफ देखती है फिर अपने आंसू पोंछ कर नन्नू के पास आकर उसे गले लगा लेती है कुछ देर नन्नू भी सविता के आंचल में छुप कर रो लेता है क्या होगा अगर तेरी नाव भी बहकर आगे जाएगी तो सविता नन्नू से प्यार से पूछती है आंचल में छुपा हुआ नन्नू बोलता है पिंकी कहती है कि नाव बह कर शिवजी के पास जाती है सविता ने आश्चर्य से नन्नू के चेहरे को अपने हाथों में लिया और पूछा पिंकी को कैसे पता? उसकी नानी ने बताया उसे और वह कहती है कि शिव जी के पास जब नाव जाती है तो वे उन को खुशियां देते हैं नन्नू की बातों को सुन सविता हंस देती है और फिर पूछती है कि शिव जी को कैसे पता कि यह किसकी नाव है और उसे क्या चाहिए इस बार नन्नू थोड़ी देर चुप हो जाता है फिर बोलता है यह तो नहीं पता इसीलिए तो मैं उन में अपना नाम और खुशियां लिखकर भेजता हूं सुनकर सविता दंग रह जाती है और दौड़ कर दरवाजे पर आकर किनारे पड़ी कश्तियों को उठाकर देखती है बाहर की बरसात तो रुक जाती है लेकिन सविता की आंखें एक बार फिर बरस जाती है वह उन कश्तियों को बार-बार पढ़ती है टूटे हुए शब्द लेकिन नन्नू को वह सब खुशियां चाहिए यह बयां कर रहे हैं आखरी कश्ती को देख सविता नन्नू को गले लगा लेती है उसमें लिखा है “मां पापा” सविता नन्नू को एक बार फिर दरवाजे पर लाती है और उसे कश्तियों के डूबने का कारण बताती है नन्नू कागज पुराने हो या नये कश्ती को फर्क नहीं पड़ता लेकिन उनके घर ऊंचे हैं इसीलिए कश्तियां आसानी से बह जाती है और हमारे घर का हिस्सा बहुत ही नीचा इसीलिए वह ज्यादा पानी में डूब जाती है नन्नू को यह बात तो पता नहीं कितनी समझ आई लेकिन अगले दिन की बारिश में सविता भी नन्नू के साथ जी भर कश्तियां बहाने लगी बहुत कोशिशों के बाद नन्नू की कश्तियां उस बारिश के पानी में बह चली और नन्नू उन्हें देखकर चिंटू को खूब चिढ़ाने लगा कश्तियां शिवजी तक पहुंची भी क्योंकि मां ही तो उसका दूसरा रूप है उसे जब पता चले कि उसके नन्नू को क्या चाहिए तो वह कुछ भी करके उसे लाकर दे ही देती है उसी दिन से सविता ने ज्यादा घरों में झाड़ू,बर्तन,कपड़े सब करना शुरू कर दिया ताकि वह अपने घर का हिस्सा भी ऊंचा करवा सकें |
“पंखुड़ी”