जब हम और तुम सपनों में ही मिल लेते हैं
तो बेवजह मिलने मिलाने की जरूरत क्या है।
इश्क इक आग का दरिया है कोई समंदर नहीं
फिर इसमें कूद के जाने की जरूरत ही क्या है।
सरे दुनिया में ढूढ़ लिया है जब तुमको ही
अब किसी और पे मरने की जरूरत क्या है।
सिर्फ तेरी मेरी कहानी लिखी है इस जीवन ने
फिर मुझे गैर के पास जाने की जरूरत क्या है।
तुम कहते हो दिल का हाल समझ लेते हैं बिन कहे
फिर आपस में खतों किताबत की जरूरत क्या है।
तेरे इश्क़ में हैं हम गुम की मुझमे बस गए हो तुम
अब मुझे किसी और डगर जाने की जरूरत क्या है।
तुम कहते हो अब छोड़कर कहीं न जाएंगे तुम्हें
फिर बार-बार के कसमों वादों की जरूरत क्या है।
(अनिता कुशवाहा)
मौलिक एवं स्वरचित