ख़त लिख रही हूँ अब
लिखूँ भी तो क्या लिखूँ ll
अरसा हुआ देखे अब
सोचूँ भी तो क्या सोचूँ ll
जो अनजान हूँ तुझसे
ख़ुद को क्या पहचान दूँ ll
तन्हाई ही मेरा अब हमसाया है
अब तुझे हमसफ़र कहूँ तो क्या कहूँ ll
हिज़्र लिखूँ, वस्ल लिखूँ अब तुझे
लिखूँ भी तो क्या लिखूँ ll
जो कुछ बचा नहीं दरमियाँ हमारे
पास रखूं भी तो क्या रखूँ ll
ख़त लिख रही हूँ अब
लिखूँ भी तो क्या लिखूँ ll
अरसा हुआ देखे अब तुझे
सोचूँ भी तो क्या सोचूँ ll
✍️ज्योति प्रिया, बेगूसराय