कुछ लोग धरती पर आते हैं ,उन्हें लगता है ,सब कुछ बहुत अच्छा होगा,मौज मस्ती की जिंदगी जिएंगे ,और समय पर  दुनिया को अलविदा  कर देंगे।पर ऐसा संभव है क्या इस  धरा पर।

तुलसीदास ने रामचरितमानस में लिखा था_
कर्म प्रधान विश्व रची राखा
जो जस करहि सो तस फल  चाखा।
आप सतत अच्छे कर्म करते रहें ,आपको उसका परिणाम भी अच्छा ही मिलता है।
एक बार की बात है ,एक व्यक्ति अपने सांसारिक कर्तव्यों के प्रति मुख मोड़ कर सन्यास के लिए अपने घर ,पत्नी ,बच्चों को छोड़ रात के अंधेरे में निकल पड़ा।
वो दर दर भटकता रहा।  भटकते भटकते एक दिन एक संत रूपी ईश्वर  के दर्शन हुए, संत ने पूछा _ क्या बात है वत्स,तुम इस तरह दर बदर क्यों घूम रहे हो।
उस व्यक्ति ने कहा _ गुरु जी,मैं  एकांत जंगल में  ईश्वर की साधना करना चाहता हूं।मैं इस भौतिक संसार से ऊब चुका हूं।
ईश्वर रूपी संत  ने कहा _ अभी साधना की क्या जल्दी है ??
पहले ये काम कर दो,मैं चाहता हूं कि तुम प्राग देश का राज्य संभालो। तुम्हारे जैसा निष्काम व्यक्ति जो भौतिक सुखों से दूर हो चुका है वह प्रजा के हित का ख्याल अच्छे से रख सकता है।
प्राग देश के राजा का निधन हो गया है ,किसी को इसकी खबर नहीं है,युवराज के अभाव में मंत्रियों ने गुप्त मंत्रणा  की है कि जो सन्यासी प्रातः 4 बजे सबसे पहले राज महल में पहुंचेगा उसका राजतिलक होगा।
तुम कल वहां 4 बजे पहुंच जाना।
संत रूपी ईश्वर वहां से चले गए।वह व्यक्ति बहुत खुश हुआ,किसी तरह रात काटी और प्रातः काल ही राजमहल के बाहर पहुंच गया।
मंत्री बाहर ही खड़े थे।अचानक उत्सव जैसा माहौल हो गया।उस व्यक्ति को अंदर ले जाया गया,पैर धुलाए गए,उसके बाद कई देशों के पंडितों ने भिन्न भिन्न तीर्थस्थलों की नदियों के जल से अभिषेक किया,और अंत में राजमुकुट पहनाया गया।
वो व्यक्ति बहुत खुश था,वह अपनी पुरानी जिंदगी भूल कर ,सुंदर रानी के साथ ऐशो आराम की जिंदगी जीने लगा।
साल बीत गए,वही संत राजदरबार में पधारे।राजा ने उनका स्वागत किया।संत उसे लेकर राजप्रसाद के कमरे में गए,वहां उन्होंने कहा तुम्हारा जंगल जाने और  ईश्वर आराधना का समय आ गया है।अब राज्य किसी सुपात्र को प्रदान कर वन  के लिए प्रस्थान करो।
उस व्यक्ति (राजा) ने तुरंत ताली बजाई और कहा _ सैनिको इस व्यक्ति को कारागार में डाल दो।
लेकिन ये क्या ?कोई भी उसका आदेश मान नहीं रहा ,और वो सड़क पर खड़ा चिल्ला रहा,उसके चारो ओर काफी भीड़ थी सभी लोग हंस रहे थे कि ये व्यक्ति क्या बड़बड़ा रहा है। 
वह जैसे  नींद से जागा ,उसने देखा वहां न कोई राजमहल था न कोई राजा ,न रानी।
उसे समझ में नहीं आ रहा था कि जो वह देख रहा है वह हकीकत है ,या जो उसने अभी कुछ पल में जिया वो। क्या वो चलचित्र देख रहा था जिसमें सारे किरदार कुछ देर के लिए हकीकत जैसे लगे और अब ये सब मिथ्या है कह कर गायब हो गए।
तभी वो  संत  प्रकट हुए और उन्होंने कहा_ घबराओ नहीं, ये माया थी ,जो तुमने पल भर में सालों का आनंद उठाया।
तुम अभी ईश्वर से प्यार नहीं करते ,अभी  तुम्हें उन्हें पाने की कोई ललक नहीं है।
तुम सिर्फ कायरों की तरह  अभाव और परिस्थितियों से भाग रहे थे।संसाधन और अनुकूल परिस्थिति आते ही तुम पूरी तरह अपने कर्तव्य और ईश्वर से विमुख हो गए , जाओ और अपने कर्तव्यों का निर्वहन करो।
तब जाकर उस व्यक्ति की आंख खुली ,वह अपने घर की ओर भागा जिसे त्याग कर आया था,अपने कर्म और कर्तव्यों को पूरा करने।
                  समाप्त
स्वरचित_संगीता
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