आए थे बरसों पहले वो आहिस्ता आहिस्ता।
समुद्री यानों पर चलकर आहिस्ता आहिस्ता।
ढ़ोकर लेकर जाते रहे पदार्थ आहिस्ता आहिस्ता।
सुगंधित मसाले,नरम कपास आहिस्ता आहिस्ता
उस पार प्रचार किया इनका आहिस्ता आहिस्ता।
मुनाफा उनका बढ़ता गया आहिस्ता आहिस्ता।
चस्का उनको लगता गया आहिस्ता आहिस्ता।
फिर व्यापारी बन गए यहां आहिस्ता आहिस्ता।
कारखाना खोलने की आज्ञा ले ली आहिस्ता आहिस्ता।
बादशाह के खिदमत में आए थे आहिस्ता आहिस्ता।
झुक कर सलाम करते थे फिर तन गए आहिस्ता आहिस्ता।
फिर पूरी हिंदखंड में फैल गए आहिस्ता आहिस्ता।
बादशाह से छीनी सत्ता आहिस्ता आहिस्ता।
व्यापारी बन गया सरकार आहिस्ता आहिस्ता।
जुल्म,जुल्मी का बढ़ता गया आहिस्ता आहिस्ता।
जख्म गहरा होता गया आहिस्ता आहिस्ता।
कनक पंक्षी बन गया पीतल आहिस्ता आहिस्ता।
फिर जागृति आई पीड़ितों में आहिस्ता आहिस्ता।
विरोध किया बलिदान हुए आहिस्ता आहिस्ता।
आखिर सैंतालिस में दफा हुए आहिस्ता आहिस्ता।
बलिदानों की कीमत पहचानों बेशक आहिस्ता आहिस्ता।
एकता कभी ना तोड़ो, सुदृढ़ता हो बेशक आहिस्ता आहिस्ता।
चेतना सिंह,पूर्वी चंपारण