जब नहीं थे हम तुम
प्रकृति तब भी थी
परिवर्तन से इसके ही हुआ हमारा सृजन
जीवन दिया इसी की सौगातों ने
विकास की दौड़ में हमने इसे भुला दिया
नियंत्रण इस पर अपना लगा दिया
वो चुपचाप देखती रहीं
मानव की हर भूल को नज़रअंदाज किया
आधुनिकता की होड़ में
जब स्वरुप को हर ओर छलनी किया
इसने भी फिर रूप बदल
मनुष्य पर प्रहार किया
आँधी, तूफानों के कंपन से भी
मानव ह्रदय नहीं हिला
संकेत देती आपदाओं का
संदेश भी नहीं सुना
महामारी के कड़े प्रहार ने
अब एक मौका ओर दिया
किस तरह इसने हमें  घरों
में ही कैद किया
सिद्ध है सृजन इसका
ऊपर इससे तू नहीं
साथ लेकर चल इसे
नहीं तो तेरा अस्तित्व नहीं 
चेतावनी ये जाने ले अभी
नहीं तो अंतिम दौर दूर नहीं ।
शैली भागवत ‘
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