रवि की आंखों के सामने रीना का चेहरा घूमता रहता था । कितनी नशीली आंखें थी रीना की । काश वह उन्हें हमेशा देखता रहता । उन आंखों में ही डूबा रहता । बिखरे बिखरे से बाल । रेशम से भी मुलायम । कैसी भीनी भीनी सी खुशबू आ रही थी उनमें से । दहकते अनार से लाल लाल होंठ । वे इतने मीठे होंगे उसे पता ही नहीं था । जिंदगी के इस रंग से वह अब तक परिचित ही नहीं था । “किस” इतना प्यारा होता है , उसे पता ही नहीं था । उस “किस” के बाद जैसे और कुछ करने की इच्छा नहीं रही थी । काश ऐसा किस रोज होता । पर यहां तो कोई रीना नहीं है फिर किस कहाँ से होगा । क्या यहां पर भी कोई रीना मिल सकती है ?
वह खयालों की दुनिया में खोया रहता । पढ़ने में मन नहीं लगता था उसका । मन लगे भी तो कैसे ? आंखों में तस्वीर तो रीना की बसी हुई थी । केवल वही नजर आती थी और कुछ नजर आता ही नहीं था । किताबों में उसी का चेहरा , कॉपी में उसी की शक्ल । यहां तक कि आईने में भी अपने चेहरे के बजाय रीना का चेहरा दिखाई देने लगा रवि को ।
सर्दियों के दिन थे । रविवार था । स्कूल की छुट्टी थी । परीक्षा सिर पर आ गई थीं । उसके पिताजी यानि कि सरपंच साहब ने भी उसे परीक्षाओं की अच्छी तैयारी करने के लिए कह दिया था । उसे पढ़ना तो पड़ेगा । कमरे के अंदर गलन बहुत ज्यादा थी । कंपकंपी छूटने लगी थी उसकी । रवि ने सोचा कि क्यों ना ऊपर छत पर चला जाये । वहाँ पर धूप रहेगी तो ज्यादा सर्दी नहीं लगेगी इसलिए पढ़ने में कोई अड़चन नहीं आएगी । पढ़ने के लिए एकदम सही जगह है छत । यह सोचकर वह ऊपर छत पर आ गया ।
जैसे ही वह छत पर आया सामने का नजारा देखकर चकरा गया । उसने जो देखा वह किसी सपने से कम नहीं था । उसने एक दो बार पलकें झपकाई मगर हकीकत तो हकीकत रहती है, बदल तो नहीं जाती है न । सामने क्या देखता है कि मीना भाभी छत पर नहा रही थी धूप में । उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि मीना भाभी ऐसे खुले में भी नहाती हैं और वो भी सार्वजनिक प्रदर्शन करते हुये । केवल पेटीकोट ही पहने हुये थीं मीना भाभी । वह पेटीकोट भी काफी ऊपर तक सरका हुआ था और गीला था । मीना भाभी दीन दुनिया से बेखबर होकर नहाने में मगन थीं और अपने बदन पर साबुन मलने में तल्लीन थीं । नहाते वक्त कोई गाना भी गुनगुना रही थीं शायद । गाने के बोल तो उसे साफ साफ सुनाई नहीं दे रहे थे मगर ऐसा लग रहा था कि अमिताभ बच्चन की एक फिल्म सौदागर का गाना “सजना है मुझे” गा रही थीं । रवि की आंखों के आगे बिजलियाँ सी कौंध गई । वह अपलक निहारता रहा उन्हें । मीना भाभी को वैसे बहुत बार देखा था उसने । बातें भी की थी । भाभी ने कभी कभी छोटा मोटा काम भी बताया था । उसने कभी मना नहीं किया था । वो बड़े ही सलीके से रहने वाली महिला थीं । मगर आज उन्हें लगभग प्राकृतिक अवस्था में देखकर वह आश्चर्यचकित रह गया । किंकर्तव्यविमूढ़ होकर वह वहीं का वहीं खड़ा रह गया ।
जैसे ही उसे भान हुआ कि वह एक नहाती हुई स्त्री को देख रहा है, उसे अपनी भूल का अहसास हुआ । वह वापस नीचे जाने को उद्यत हुआ ही था कि अचानक भाभी की निगाह उस पर पड़ गयी । दोनों ने एक दूसरे को देखा तो दोनों ही अचकचा गये । भाभी एक बार तो पत्थर की मूर्ति की तरह जड़ हो गई थीं । ना तो रवि ने ऐसी कल्पना ही की थी और ना ही भाभी ने कभी की होगी । दोनों थोड़ी देर एक दूसरे को ऐसे ही देखते रहे । अचानक भाभी को होश आया और वह अपनी गीली साड़ी अपने बदन पर डालने लगी । यह देखकर रवि घबरा कर नीचे चला आया ।
रवि का दिल बहुत जोर जोर से धड़क रहा था । जैसे लोहार की धौंकनी “धाड़ धाड़” चल रही हो । यह सब क्या हो गया ? कैसे हो गया ? रवि सोचने लगा कि इसमें उसका क्या कसूर है ? अगर कोई खुले में “खुलकर” नहायेगा तो बाकी लोग अपनी आंखें बंद कर लें क्या ? कितनी शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है उसे । अचानक उसके मन में खयाल आया कि जब उसे इतनी शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है तो फिर भाभी का क्या हाल हो रहा होगा ?
इस बात को सोचकर ही घबराहट सी होने लगी थी रवि को । मन का चोर कहने लगा कि अगर भाभी ने घबराहट में मां को बता दिया तो ? मां को भी कितना और कैसे बतायेगी यह भी पता नहीं है । कहीं सारी गलती उसी की बता दी तो ? जैसे शीला चाची ने सारा दोष बिहारी पर मढ़ दिया था । औरतों की बातों पर सब कोई विश्वास कर लेता है । उसकी बात पर कौन यकीन करेगा ?
इस बेचैनी का कोई तोड़ उसके पास नहीं था । फिर दिल ने ही उत्तर सुझा दिया “इसमें मैंने क्या किया है ? प्रदर्शनी आप करवायें और दंड हम भुगतें ? यह तो बहुत नाइंसाफी है । आखिर मेरा कसूर क्या है ? क्या ऊपर छत पर धूप सेंकना भी कोई अपराध है ? उसने भाभी को ऊपर छत पर सरेआम नहाने के लिए तो नहीं कहा था । उनको खुद को सोचना चाहिए था । अगर वो खुद ही ऐसा कर रहीं हैं तो अंजाम भी उन्हें ही भुगतना चाहिए । लुगाइयों की लड़ाई में मर्दों को दंड क्यों ” ?
पर रह रह कर एक ही डर उसके दिल में घुसने का प्रयत्न कर रहा था । ” उसने अगर मां को कह दिया तो ” ? इस बात से वह कांप गया । जिस मां ने उसे कभी किसी बात पर नहीं डांटा आज वो ना जाने उसे इस बात पर कितना जलील करेंगी ? क्या मेरी बात भी सुनेंगी वो ? कहीं ऐसा ना हो कि वे कोई फरमान जारी कर दें और हमें अपनी बात कहने का भी अवसर ना दें ” सोच सोचकर रवि का कलेजा मुंह को आ गया था ।
वह अपने कमरे में आकर गुमसुम सा बैठ गया । किताब लेकर बैठा मगर आंखों के सामने मीना भाभी विराजमान हो गयीँ । वो वहां से हटने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं । उनका संगमरमरी बदन बार बार कौंध रहा था बिजली की तरह । उस उम्र में नारी का बदन बहुत आकर्षित करता है किशोरावस्था के लड़कों को । यही वह अवस्था है जब लड़के और लड़कियां दिग्भ्रमित हो जाते हैं । प्यार का सिलसिला इसी अवस्था से शुरू होता है । नारी का शरीर बहुत अच्छा लगता है तरुण वय के लोगों को ।
रवि के मस्तिष्क में झंझावातों का दौर चल रहा था । उहापोह की गहरी खाई में पड़ा हुआ था रवि । यह कोई आनेवाले तूफान का संकेत लग रहा था । वह मां की डांट से बचने के लिए मौहल्ले में खेलने चला गया । हालांकि वहां उसका मन बिल्कुल नहीं लगा मगर उसको तो मां से दूर रहना था ।
लगभग दो घंटे के बाद वह डरते डरते वापस घर आया । उसे लगा कि मीना भाभी ने अब तक तो मां को बता दिया होगा और मां डंडा लेकर दरवाजे पर ही बैठी होंगी कि कब मैं आऊं और कब मेरी खबर ले । मगर उसकी यह आशंका निर्मूल साबित हुई । मां अपने घरेलू कामों में व्यस्त थीं । मां ने इतना ही कहा था “कहाँ चला गया था तू ? खाना ठंडा हो गया है ना । खाने के टाइम पर खेलने चला जाता है । बावला कहीं का । आगे से ध्यान रखना” ।
रवि को कुछ तसल्ली सी मिली । क्या मीना भाभी ने अब तक मां को नहीं बताया है ? या मां ने खुद ही उन्हें कह दिया होगा कि इसमें रवि की क्या गलती है ? उसने उनके घर में जबरदस्ती घुसकर तो उसे ऐसे नहीं देखा था न ? जब काम ऐसे करोगी तो सब कोई देखेगा । रवि हो या कोई और । और मां ने मीना भाभी को डांटकर भगा दिया हो । इस विचार से रवि को कुछ सांत्वना सी मिली । मगर चोर की दाढ़ी में तिनका हमेशा ही रहता है । वह कभी चिंता मुक्त नहीं हो सकता है ।
बड़ी मुश्किल से वह दिन गुजरा । रात हो गई । रवि का खाने में भी मन नहीं लगा यद्यपि खाना उसकी पसंद का ही बना था । आशंका से ग्रसित तन और मन कभी प्रसन्न नहीं हो सकते हैं । अनजाने भय का साया इतना विकराल होता है कि उसमें सब खुशियां सिमटकर रह जाती हैं । आशंकाओं के बादल हरदम छाये रहते हैं । आफत की बारिश कभी भी हो सकती है । रवि के लिए यह रात गुजारनी बहुत भारी पड़ गई थी ।